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ए री मैं तो प्रेम दीवानी….मीरा के रंग रंगी गीता दत्त की आवाज़

Tuesday, November 24th, 2009

Nargis

नवंबर १९३०। स्थान बंगाल का फ़रीदपुर, जो आज बंगलादेश का हिस्सा है। एक ज़मीनदार परिवार में जन्म हुआ था एक बच्ची का। १९४२ के आसपास वो परिवार साम्प्रदायिक दंगों से अपने आप को बचते बचाते आ पहुँची बम्बई नगरी। लाखों की सम्पत्ति और ज़मीन जायदाद को युंही छोड़कर बम्बई आ पहुँचे इस परिवार ने दो कमरे का एक मकान भाड़े पर लिया। गायन प्रतिभा होने की वजह से यह बच्ची हीरेन्द्रनाथ नंदी से संगीत की तालीम ले रही थी। दिन गुज़रते गए और यह बच्ची भी बड़ी होती गई। १६ वर्ष की आयु में एक रोज़ यह लड़की अपने घर पर रियाज़ कर रही थी जब उसके घर के नीचे से गुज़र रहे थे फ़िल्म संगीतकार पंडित हनुमान प्रसाद। उसकी गायन और आवाज़ से वो इतने प्रभावित हुए कि वो कौतुहल वश सीधे उसके घर में जा पहुँचे। पंडित हनुमान प्रसाद से उसकी यह मुलाक़ात उसकी क़िस्मत को हमेशा हमेशा के लिए बदलकर रख दी। पंडित प्रसाद ने फ़िल्म ‘भक्त प्रह्लाद’ में इस लड़की को पहला मौका दिया और इस तरह से फ़िल्म जगत को मिली एक लाजवाब पार्श्व गायिका के रूप में गीता रॉय, जो आगे चलकर गीता दत्त के नाम से मशहूर हुईं।

दोस्तों, आज २३ नवंबर, गीता जी के जनम दिवस के उपलक्ष पर हम ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर शुरु कर रहे हैं दस कड़ियों की एक ख़ास लघु शृंखला ‘गीतांजली’। गीता दत्त के चाहने वालो की जब बात चलती है, तो इंटरनेट से जुड़े संगीत रसिकों को सब से पहले जिस शख्स का नाम याद आता है वो हैं हमारे अतिपरिचित पराग सांकला जी। गीता जी के गीतों के प्रति उनका प्रेम, जुनून और शोध सराहनीय रहा है। और इसीलिए प्रस्तुत शृंखला के लिए उनसे बेहतर भला और कौन होता जो गीता जी के गाए १० गानें चुनें और उनसे संबंधित जानकारियाँ भी हमें उपलब्ध कराएँ। और उन्होने बहुत ही आग्रह के साथ हमारे इस अनुरोध को ठीक वैसे ही पूरा किया जैसा हमने चाहा था। तो आज से अगले दस दिनों तक हम सुनेंगे पराग जी के चुने हुए गीता जी के गाए १० ऐसे गानें जो फ़िल्माए गये हैं सुनहरे दौर के दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर। इस पूरी शृंखला के लिए शोध कार्य पराग जी ने ही किया है, हमने तो बस उनके द्वारा उपलब्ध कराई हुई जानकारी का हिंदी में अनुवाद किया है।

जब गीता रॉय शुरु शुरु में आईं थीं तो उन्होने कई फ़िल्मों में भक्ति रचनाएँ गाईं थीं। उनकी आवाज़ में भक्ति गीत इतने पुर-असर हुआ करते थे कि उन रचनाओं को सुनते हुए ऐसा लगता था कि जैसे ईश्वर से सम्पर्क स्थापित हो रहा हो! तो क्यों ना हम ‘गीतांजली’ की शुरुआत एक भक्ति रचना के साथ ही करें। और ऐसे में १९५० की फ़िल्म ‘जोगन’ का ज़िक्र करना अनिवार्य हो जाता है। जी हाँ, आज गीता जी की आवाज़ सज रही है नरगिस के होंठों पर। रणजीत मूवीटोन की इस फ़िल्म का निर्देशन किया था किदार शर्मा ने और नायक बने दिलीप कुमार। संगीतकार बुलो सी. रानी के करीयर की सब से चर्चित फ़िल्म रही ‘जोगन’ जिसमें उन्होने एक से एक मीरा भजन स्वरबद्ध किए जो गीता जी की आवाज़ पाकर धन्य हो गए। “घूंघट के पट खोल रे”, “मत जा मत जा जोगी”, “ए री मैं तो प्रेम दीवानी”, “प्यारे दर्शन दीजो आए” और “मैं तो गिरिधर के घर जाऊँ” जैसे मीरा भजन एक बार फिर से जीवित हो उठे। मीरा भजनों के अतिरिक्त इस फ़िल्म में किदार शर्मा, पंडित इंद्र और हिम्मतराय शर्मा ने भी कुछ गीत लिखे। लेकिन आज हम सुनेंगे मीरा भजन “ए री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरो दर्द ना जाने कोई”। पाठकों की जानकारी के लिए हम बता दें कि इस फ़िल्म का “मत जा जोगी” भजन गीता जी के पसंदीदा १० गीतों की फ़ेहरिस्त में शोभा पाता है जो उन्होने जारी किया था सन् १९५७ में।

दोस्तों, क्योंकि आज गीता जी के साथ साथ ज़िक्र हो रहा है अभिनेत्री नरगिस जी का, तो उनके बारे में भी हम कुछ बताना चाहेंगे। नरगिस हिंदी सिनेमा के इतिहास का एक चमकता हुआ सितारा हैं जिन्होने सिनेमा के विकास में और सिनेमा को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। १९३५ में बाल कलाकार के रूप में फ़िल्म ‘तलाश-ए-हक़’ में पहली बार नज़र आईं थीं, लेकिन उनका अभिनय का सफ़र सही मायने में शुरु हुआ सन् १९४२ में फ़िल्म ‘तमन्ना’ के साथ। ४० और ५० के दशकों में वो छाईं रहीं। युं तो वो एक डॊक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन क़िस्मत उन्हे फ़िल्म जगत में ले आई। उनकी यादगार फ़िल्मों में शामिल है ‘बरसात’, ‘अंदाज़’, ‘जोगन’, ‘आवारा’, ‘दीदार’, ‘श्री ४२०’, ‘चोरी चोरी’ और इन सब से उपर १९५७ की फ़िल्म ‘मदर इंडिया’। १९५८ में सुनिल दत्त से विवाह के पश्चात उन्होने अपना फ़िल्मी सफ़र समाप्त कर दिया और अपना पूरा ध्यान अपने परिवार पे लगा दिया। कैंसर की बीमारी ने उन्हे घेर लिया और ३ मई १९८१ को उन्होने इस संसार को अलविदा कह दिया। और इसके ठीक ५ दिन बाद, ७ मई १९८१ को प्रदर्शित हुई उनके बेटे संजय दत्त की पहली फ़िल्म ‘रॉकी’। इस फ़िल्म के प्रीमीयर ईवेंट में एक सीट ख़ाली रखी गई थी नरगिस के लिए। और आइए अब सुनते हैं नरगिस पर फ़िल्माया गीता रॉय की आवाज़ में फ़िल्म ‘जोगन’ से यह मीरा भजन जिसे सुनते हुए आप एक दैवीय लोक में पहुँच जाएँगे। आज गीता जी के जनम दिवस पर हम हिंद-युग्म की तरफ़ से उन्हे अर्पित कर रहे हैं अपने विनम्र श्रद्धा सुमन!

भजन का भाग -१

भजन का भाग -२

भजन के बोल:

ए री मैं तो प्रेम दिवानी मेरो दर्द न जाने कोये

सूलीयों पर सेज हमारी सोनो किस बिध होये
गगन मंडल पर सेज पिया की मिलन किस बिध होये
दर्द न जाने कोये
ए री मैं तो …

घायल की गत घायल जाने और न जाने कोये
मीरा के प्रभु सिर मिटे जब वैद साँवारिया होये
दर्द न जाने कोये
ए री मैं तो …

Source :

http://podcast.hindyugm.com/2009/11/blog-post_23.html

हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

गीता दत्त

Tuesday, September 22nd, 2009

लेखिका: पुन्या ‌‌श्रीवास्तव
ये लेख लेखिका के ब्लौग पोस्ट से उनकी अनुमति से पेश किया जा रहा है

यह नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर उभरती है – सीपिया टोन में रंगी एक तस्वीर – एक साधारण पर आकर्षक चेहरा, नाक में एक छोटी लौंग, माथे पर एक मध्यम आकार की बिंदी और कानों में झुमके।
Geeta Dutt
पर इस चेहरे में सबसे आकर्षक चीज़ है – होठों पर एक अधखिली मुस्कान।

वो मुस्कान – जो गीता दत्त नामक व्यक्तित्व का जीवन समावेश है।

करीब २ साल पहले, रात को लेटे हुए AIR FM Gold सुन रही थी। उन्ही दिनों मेरी दिलचस्पी पुराने गीतों और फिल्मों की तरफ बढ़नी शुरू हुई थी. रेडियो सुनते सुनते पता नहीं क्या सोच रही थी कि एक गीत बजने लगा – “तद़बीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले…”

और उस एक पल ने मेरा सारा ध्यान उस आवाज़ की ओर ला खड़ा किया – एक अन्जानी आवाज़।

अभी तक पुराने दौर की गायिकाओं के रूप में सिर्फ आशा – लता की आवाज़ से परिचित थी।पर यह नयी आवाज़ किसकी है? वह गीत ख़त्म हो गया पर वह आवाज़ मन में बैठ गई।

Google पर ढूँढने पर उस गीत के बारे में जानकारी मिली:

फिल्म – बाज़ी

संगीत – सचिन देव बर्मन
गायिका – गीता दत्त

और अगले ही पल Google Image पर यह नाम टाइप करके enter दबा दिया।

कौन है इस अनुपम, अद्वितीय आवाज़ की मालिक -गीता दत्त?

और सबसे पहली तस्वीर वही – सीपिया टोन में रंगी हुई – अधखिली मुस्कान के साथ – गीता दत्त।

तब से अब तक, मेरे लिए गीताजी की पहचान बन गई है वह तस्वीर और वह गीत – “तद़बीर से…”

1950 की बात है – रिकॉर्डिंग स्टूडियो में इसी गीत की रिकॉर्डिंग चल रही थी। फिल्म के निर्देशक भी वहां उपस्थित थे – गुरु दत्त। गीत की रिकॉर्डिंग तो ख़त्म हो गयी, पर वह आवाज़ गुरु दत्त के मन में बैठ गयी।

आज पचास और साठ का दशक हिंदी सिनेमा का ‘स्वर्णिम युग’ कहलाता है और जो नाम उस युग की पहचान के रूप में सामने आते हैं, उनमें से मेरा प्रिय एक नाम है – गुरु दत्त!

आज भी हिंदी सिनेमा में गुरु दत्त का स्वर्णिम स्थान है। उनकी ‘प्यासा’, ‘कागज़ के फूल’ और ‘साहिब़ ब़ीबी और गुलाम’ कालजयी कृतियाँ घोषित हो चुकी हैं।

पर गीता दत्त?

इन कालजयी कृतियों में महत्त्वपूर्ण योगदान के बाद भी, यह नाम समय की लहरों में डूब-सा गया है.

यह द़ीगर की बात है कि 1950 से पहले नज़ारा इससे ठीक उल्टा था। गीता रॉय – हिंदी, गुजराती और बंगला संगीत में यह नाम स्थापित हो चुका था। और गुरु दत्त – गुमनामी से निकल कर अपनी पहचान तलाशता एक नाम।

और दिलचस्प बात यह है कि मैं इनमें से जब भी कोई एक नाम सोचती हूँ, तो दूसरा नाम स्वतः ही जेहन में दौड़ा चला आता है।’ गुरु – गीता’ – मेरे लिए ये एक ही नाम के दो पहलू हैं – एक दुसरे के पूरक।

बहरहाल, आज भी जब कभी हम रेडियो पर य़दा कदा “ऐ दिल मुझे बता दे…”, “मेरा नाम चिन चिन चू…”, “बाबूजी धीरे चलना…” या “ठंडी हवा काली घटा…” सुनते हैं, तो पैर अपने आप ही थिरक उठते हैं और हम खुद को गुनगुनाने से रोक नहीं पाते।पर वह आवाज़ हम में से कितने लोग जानते हैं – पहचानते हैं?

और ये तो सिर्फ कुछ चुनिन्दा गीत हैं जो रेडियो पर सुनाई दे जाते हैं. गीता दत्त के गीतों का संसार इनसे कई गुना बड़ा है. फिर भी वह संसार आज गुमनामी की ओर अग्रसर है.
जहाँ आज भी आशा – लता जी के कई पुराने गीत रेडियो, टी।वी., यहाँ तक कि reality shows में भी गाये जाते हैं – वहां से गीताजी का नाम क्यों नदारद है?

जबकि गीता और लता – ये ही नाम ऐसे थे जिन्होंने 1950-60 के बेहतरीन गीतों को अपनी आवाज़ दी है। आशा जी को तो इन महारथियों के बीच अपनी जगह बनाने में काफी वक़्त लग गया था। और अगर इस गुमनामी की वजह – गीताजी को गुज़रे सालों हो गए हैं – है, तो फिर क्यों आज भी रफ़ी साहब और किशोरदा संगीत प्रेमियों के मन में जीवित हैं?

आज भी जब कहीं पुराने गीतों की महफिल सजती है, तो मैं तत्परता से गीताजी का नाम ढूंढती हूँ। किसी अखबार में पुराने दौर के संगीत के ऊपर लेख पढ़ती हूँ, तो उसमें गीताजी को खोजती हूँ।orkut या facebook पर पुराने गीतों की communities में गीता दत्त का ज़िक्र तलाशती हूँ। पर 100 में से 99 बार निराशा ही हाथ लगती है।

मुझे यह सोचकर सच में बेहद दुःख होता है की लता, आशा, रफ़ी, किशोर, मुकेश और मन्ना डे की पंक्ति से गीता दत्त जी का नाम क्यों लापता हो गया? कैसे लापता हो गया?

मुझे इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढे से भी नहीं मिल पा रहा है।

जब कभी ‘बादबान’ का “कैसे कोई जीए ज़हर है ज़िन्दगी…” सुनती हूँ तो मन भर आता है।

‘अनुभव’ का “मुझे जान न कहो..” मेरी पलकें भिगा जाता है।

‘साहिब बीबी और गुलाम’ का “कोई दूर से आवाज़ दे..” सुनकर रूह काँप उठती है।

‘कागज़ के फूल’ का “वक़्त ने किया क्या हसीं सितम…” सुनकर गला रुंध जाया है।

और ‘दो भाई’ का “खो के हमको पा न सकोगे, होंगे जहाँ हम आ न सकोगे, तढ़पोगे, फरियाद करोग, एक दिन हमको याद करोगे…” मन में एक टीस जगा जाता है…

कि सच में हमने गीताजी को खो दिया है। चाहकर भी उन्हें वापस नहीं ला सकते। केवल उनकी आवाज़ के माध्यम से उन्हें याद कर सकते हैं।

और लोगों से फरियाद कर सकते हैं कि कुछ करके गीताजी की याद बनाये रखें।

यह एह प्रशंसक का नम्र निवेदन है.

असली गीता दत्त की खोज में…

Monday, September 21st, 2009

जब मैं गीता दत्त के गाने सुनता हूँ तब दुविधा में पड़ जाता हूँ. “मैं तो गिरिधर के घर जाऊं” गानेवाली वो ही गायिका हैं क्या जिसने कहा था “ओह बाबू ओह लाला”. जो एक छोटे बालक की आवाज़ में फल तथा सब्जी बेच रही थी “फल की बहार हैं केले अनार हैं” वो ही एक विरहन के बोल सुना रही थी “आओगे ना साजन आओगे ना”! शास्त्रीय संगीत की मधुर लय और तानपर “बाट चलत नयी चुनरी रंग डारी” की शिकायत हो रही थी और तभी जनम जन्मांतर का साथ निभाने वाला गीत “ना यह चाँद होगा ना तारे रहेंगे मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे” गाया जा रहा था.

“कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ” में सचमुच किसी दूर कोने से एक बिरहन की वाणी सुनाई आ रही थी और साथ ही “चंदा चांदनी में जब चमके क्या हो, आ मिले जो कोई छम से पूछते हो क्या हमसे?” यह सवाल किया जा रहा था. रेलगाडी की धक् धक् पर चलती हुई रेहाना गीता की आवाज़ पर थिरक कर गा रही थी” धक् धक् करती चली हम सब से कहती चली जीवन की रेल रे मुहब्बत का नाम हैं दिलों का मेल रे”. अपने आप से सवाल किया जा रहा था “ए दिल मुझे बता दे तू किस पे आ गया हैं?” और सखी को छेड़ने की नटखट अदा थी “अँखियाँ भूल गयी हैं सोना”. सोलह साल की लड़की का बांकपन था “चन्दा खेले आँख मिचौली बदली से नदी किनारे, दुल्हन खेले फागन होली” और “तोरा मनवा क्यों घबराएँ रे” में एक अनुभव की पुकार थी. “मेरा सुन्दर सपना बीत गया” गानेवाली “मेरा नाम चिन चिन चू” के जलवे बिखर रही थी. उसी वक्त “कल रात पिया ने बात कहीं कुछ ऐसी, मतवाला भंवरा कहे कली से जैसी” के मदहोश बोल सुनाये जा रहे थे.

युगल गीतों की बात की जाए तो एक तरफ “कल साजना मिलना यहाँ, हैं तमाम काम धाम रे आज ना आज ना” की स्वाभाविक शिकायत की जा रही थी वहीँ दूसरी ओर “तुमसे ही मेरी ज़िन्दगी मेरी बहार तुम” के स्वर गूँज रहे थे. “अरमां भरे दिल की लगन तेरे लिए हैं” के सुरीले स्वरों के साथ “ख्यालों में किसीके इसी तरहे आया नहीं करते” की तकारार हो रही थी. “रात हैं अरमान भरी और क्या सुहानी रात हैं, आज बिछडे दिल मिले हैं तेरा मेरा साथ हैं” के रोमांचक ख्यालों के साथ साथ राधा और कृष्ण के रंग में डूबा हुआ “आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे ब्रिज में अकेली राधे खोयी खोयी फिरे” की व्याकुल पुकार भी थी.

“मेरा दिल जो मेरा होता पलकों पे पकड़ लेती” के आधुनिक और काव्यात्मक खयालों के साथ साथ “धरती से दूर गोरे बादलों के पार आजा आजा बसाले नया संसार” की सुन्दर कविकल्पना भी थी. “मिया मेरा बड़ा बेईमान मेरी निकली रे किस्मत खोटी” की नोक-झोंक के साथ “मुझको तुम जो मिले ये जहां मिल गया” की खुशियाँ भी शामिल थी. “मोसे चंचल जवानी संभाली नहीं जाए” के लगभग कामुक भावों के साथ साथ “मेरे मुन्ने रे सीधी राह पे चलना जुग जुग तक फूलना फलना” का आशीर्वाद भी था.

नायक को कह रही थी “राजा मोहे ले चल तू दिल्ली की सैर को” और फिर कोई नटखट साजन “लखनो चलो अब रानी बम्बई का बिगडा पानी” की शिकायत करा रहा था. सखियों के साथ “चलो पनिया भरन को पतली कमरिया पे छलके गगरिया हो” गाकर नदी किनारे जाने की बातें और शादी में बिदाई के समय “बाबुल का मोरे आँगन बिछडा छूटी रे मोरी सखियाँ” की व्याकुलता थी. नायक के साथ सीटी बजाना सीखते सीखते “सुन सुन सुन जालिमा” गाया जा रहा था और गाँव की लोकधुन पर “नदिया किनारे मोरा डेरा मशाल जले सारी रतिया” गुनगुनाया जा रहा था.

“गायें गायें हम नए तराने गायें” के आधुनिक स्वरों के साथ “जमुना के तीर कान्हा आओ रो रो पुकारे राधा मीठी मीठी बंसिया बजाओ” की पुकार भी थी. हौले हौले ..हाय डोले.. के बोलों में बंगाल का जादू था और उड़ पुड जानिया में पंजाब की मिटटी की खुशबू थी. प्यार की प्यास के हिंदी गाने (उत्तर में हैं खडा हिमालय) में “आमार शोनार बांगला देश” की मधुर तान छेड़ रही थी और बंगाली फिल्म में “तेरे लिए आया हैं लेके कोई दिल” के हिंदी बोल सुना रही थी. “तालियों ना ताले” के सुरों पर गरबा का रास रचाया जा रहा था और मराठी में “गणपति बाप्पा मोरया, पुढल्या वर्षी लौकर या” गाकर गणेश भगवान् की आरती कर रही थी. माला सिन्हा की बनाई हुई नेपाली फिल्म में गाने गाये और फिर “जान लेके हथेली पे चल बैं जमाने से ना डरबएं राम” भोजपुरी में गा रही थी.

ममता गा रही थी “नन्ही कली सोने चली हवा धीरे आना” और एक नर्तिका की आवाज़ थी “माने ना माने ना माने ना , तेरे बिन मोरा जिया ना माने”. “गुनगुन गुनगुन गुंजन करता भंवरा तुम कौन संदेसा लाये” की पार्वती थी और “एक नया तराना एक नया फ़साना एक नयी कहानी हूँ मैं, एक रंग रंगीली एक छैल छबीली मदमस्त जवानी हूँ मैं” की क्लब डांसर भी थी. मोरनी बनकर कह रही थी “आजा छाये कारे बदरा” और “आज नहीं तो कल बिखरेंगे ये बादल ओह रात के भूले हुए मुसाफिर सुबह हुई घर चल अब घर चल रे” गाकर हौसला बढा रही थी.

पाश्चात्य धुन पर थिरकता हुआ गीत “मुझे हुज़ूर तुमसे प्यार हैं तुम्हीं पे ज़िन्दगी निसार हैं” और हिंदुस्थानी संगीत का असर था “मेरे नैनों में प्रीत मेरे होंठों पे गीत मेरे सपनों में तुम ही समाये”. ऐसे कई अलग अलग प्रकार के भावों के गीत गाती थी कि सुननेवाला दंग रह जाएँ. “कभी अकड़ कर बात न करना हमसे अरे मवाली ” गानेवाली गायिका उसी संगीतकार के साथ मिल कर “जय जगदीश हरे” को अजरामर कर देती थी. रफी साहब के साथ तो ऐसे रसीले और सुरीले गीत गाये हैं कि उनका कोई जवाब नहीं. “अच्छा जी माफ़ कर दो, थोडा इन्साफ कर दो” गाया था फिल्म मुसाफिरखाना के लिए और उन्हीं के साथ “चुपके से मिले प्यासे प्यासे” जैसा तरल और स्वप्नील गीत भी गाया. बालक के जन्मदिन के शुभ अवसरपर एक बढिया सा गीत गाया था “पोम पोम पोम बाजा बोले ढोलक धिन धिन धिन, घडी घडी यह खुशियाँ आये बार बार यह दिन”.

गीता को हमसे दूर जाकर पैंतीस से भी ज्यादा साल गुज़र चुके हैं. वैसे तो १९५० के मध्य से ही कुछ न कुछ कारणवश वो फ़िल्मी दुनिया से धीरे धीरे अलग हो रही थी. आज की तारीख में कल का बना हुआ गाना पसंद न करने वाले लोग भला ऐसे गानों को क्यूँ याद रखे और सुने जो शायद उनके जन्म लेने से भी पहले बने थे. सीधी सी बात यह हैं कि उन गीतों में अपनापन हैं, एक मिठास हैं और एक शख्सियत हैं जिसने हरेक गाने को अपने अंदाज़ में गाया. नायिका, सहनायिका, खलनायिका, नर्तकी या रस्ते की बंजारिन, हर किसी के लिए अलग रंग और ढंग के गाने गाये. “नाचे घोड़ा नाचे घोड़ा, किम्मत इसकी बीस हज़ार मैं बेच रही हूँ बीच बाज़ार” आज से साठ साल पहले बना हैं और फिर भी तरोताजा हैं. “आज की काली घटा” सुनते हैं तो लगता है सचमुच बाहर बादल छा गए हैं.

मुग्ध कन्या भानुमती पर फिल्माया गए गाने “कबूतर आजा आजा रे” और “झनन झनन झनवा मोरे बिछुआ झनन बाजे रे” ऐसी मिठास से बने हैं कि बार बार सुनने को दिल चाहता हैं. जाल के लिए साहिर साहब की रचना “जोर लगाके हैय्या पैर जमाके हैय्या” आज भी याद किया जाता है जब कोई कठिन काम करने के लिए लोग मिल जाते हैं. “सुन सुन मद्रासी छोरी के तेरे लिए दिल जलता” का जवाब दिया “चल हट रे पंजाबी छोरे के तू मेरा क्या लगता?”. अलग किस्म के गाने , अलग कलाकार, अलग संगीतकार, अलग सहयोगी गायक, और अलग उन गानों के लेखक; मगर गीता दत्त का अपना ही अंदाज़ था. किसी ने कहा कि उनकी आवाज़ में शहद की मिठास और मधुमक्खी की चुभन का मिश्रण था. कोई कह गया कि ठंडी हवा में काली घटा समाई हुई थी. कोई कहता हैं गीता गले से नहीं दिल से गाती थी!

बीस से भी कम उम्र में मीराबाई के और कबीर के भजन जिस भाव और लगन से गाये उसी लगन से “दिल की उमंगें हैं जवाँ” जैसा फड़कता हुआ और मस्ती भरा गाना भी गाया. (इसी गाने में उन्हों ने कुछ शब्द भी कहें जो सुनाने लायक हैं). एक तरफ “जवानियाँ निगोडी यह सताएं, घूँघट मोरा उड़ उड़ जाएँ” और उसी फिल्म में गाया” अब कौन सुनेगा हाय रे दुखे दिल की कहानी”. ऐसे कितने ही गाने हैं जो पहली बार सुनने के बावजूद भी लगता हैं कि कितना दिलकश गाना हैं, वाह वाह! “बूझो बूझो ए दिल वालों कौन सा तारा चाँद को प्यारा” बिलकुल संगीतकार पंकज मलिकके अंदाज़ में गाया था फिल्म ज़लज़ला में!

भले गाना पूरा अकेले गाती हो या फिर कुछ थोड़े से शब्द, एक अपनी झलक जरूर छोड़ देती थी. “पिकनिक में टिक टिक करती झूमें मस्तों की टोली” ऐसा युगल गीत हैं जिसमें मन्ना डे साहब और साथी कलाकार ज्यादा तर गाते हैं , और गीता दत्त सिर्फ एक या दो पंक्तियाँ गाती हैं. इस गाने को सुनिए और उनकी आवाज़ की मिठास और हरकत देखिये. ऐसा ही गाना हैं रफी साहब के साथ “ए दिल हैं मुश्किल जीना यहाँ” जिसमे गीता दत्त सिर्फ आखिरी की कुछ पंक्तियाँ गाती हैं. “दादा गिरी नहीं चलने की यहाँ..” जिस अंदाज़ में गाया हैं वो अपने आप में गाने को चार चाँद लगा देता हैं. ऐसा ही एक उदाहरण हैं एक लोरी का जिसे गीता ने गया हैं पारुल घोष जी के साथ. बोल हैं ” आ जा री निंदिया आ”, गाने की सिर्फ पहली दो पंक्तियाँ गीता के मधुर आवाज़ मैं हैं और बाकी का पूरा गाना पारुल जी ने गाया हैं.

बात हो चाहे अपने से ज्यादा अनुभवी गायकों के साथ गाने की (जैसे की मुकेश, शमशाद बेग़म और जोहराजान अम्बलावाली) या फिर नए गायकोंके साथ गाने की (आशा भोंसले, मुबारक बेग़म, सुमन कल्याणपुर, महेंद्र कपूर या अभिनेत्री नूतन)! न किसी पर हावी होने की कोशिश न किसीसे प्रभावित होकर अपनी छवि खोना. अभिनेता सुन्दर, भारत भूषण, प्राण, नूतन, दादामुनि अशोक कुमार जी और हरफन मौला किशोर कुमार के साथ भी गाने गाये!

चालीस के दशक के विख्यात गायक गुलाम मुस्तफा दुर्रानी के साथ तो इतने ख़ूबसूरत गाने गाये हैं मगर दुर्भाग्य से उनमें से बहुत कम गाने आजकल उपलब्ध हैं. ग़ज़ल सम्राट तलत महमूद के साथ प्रेमगीत और छेड़-छड़ भरे मधुर गीत गायें. इन दोनों के साथ संगीतकार बुलो सी रानी द्वारा संगीतबद्ध किया हुआ “यह प्यार की बातें यह आज की रातें दिलदार याद रखना” बड़ा ही मस्ती भरा गीत हैं, जो फिल्म बगदाद के लिए बनाया गया था. इसी तरह गीता ने तलत महमूद के साथ कई सुरीले गीत गायें जो आज लगभग अज्ञात हैं.

जब वो गाती थी “आग लगाना क्या मुश्किल हैं” तो सचमुच लगता हैं कि गीता की आवाज़ उस नर्तकी के लिए ही बनी थी. गाँव की गोरी के लिए गाया हुआ गाना “जवाब नहीं गोरे मुखडे पे तिल काले का” (रफी साहब के साथ) बिलकुल उसी अंदाज़ में हैं. उन्ही चित्रगुप्त के संगीत दिग्दर्शन में उषा मंगेशकर के साथ गाया “लिख पढ़ पढ़ लिख के अच्छा सा राजा बेटा बन”. और फिर उसी फिल्म में हेलन के लिए गाया “बीस बरस तक लाख संभाला, चला गया पर जानेवाला, दिल हो गया चोरी हाय…”!

सन १९४९ में संगीतकार ज्ञान दत्त का संगीतबद्ध किया एक फडकता हुआ गीत “जिया का दिया पिया टीम टीम होवे” शमशाद बेग़म जी के साथ इस अंदाज़ में गाया हैं कि बस! उसी फिल्म में एक तिकोन गीत था “उमंगों के दिन बीते जाए” जो आज भी जवान हैं. वैसे तो गीता दत्त ने फिल्मों के लिए गीत गाना शुरू किया सन 1946 में, मगर एक ही साल में फिल्म दो भाई के गीतों से लोग उसे पहचानने लग गए. अगले पांच साल तक गीता दत्त, शमशाद बेग़म और लता मंगेशकर सर्वाधिक लोकप्रिय गायिकाएं रही. अपने जीवन में सौ से भी ज्यादा संगीतकारों के लिए गीता दत्त ने लगभग सत्रह सौ गाने गाये.

अपनी आवाज़ के जादू से हमारी जिंदगियों में एक ताज़गी और आनंद का अनुभव कराने के लिए संगीत प्रेमी गीता दत्त को हमेशा याद रखेंगे.

प्रस्तुति – पराग
(पराग गीता जी के बहुत बड़े भक्त हैं, उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर एक वेबसाइट भी बनाई है जो गीता जी की अमर आवाज़ को समर्पित है…गीता दत्त के जीवन से जुडी तमाम जानकारियाँ आप हमारी साईट पर पा सकते हैं, पता है गीतादत्त डौट कौम

गीता दत्त और प्रेम गीतों की भाषा

Monday, September 21st, 2009

हिंदी चित्रपट संगीत में अलग अलग प्रकार के गीत बनाते हैं. लोरी, भजन, नृत्यगीत, हास्यगीत, कव्वाली, बालगीत और ग़ज़ल. इन सब गानों के बीच में एक मुख्य प्रकार जो हिंदी फिल्मों में हमेशा से अधिक मात्रा में रहता हैं वह हैं प्रणयगीत यानी कि प्रेम की भाषा को व्यक्त करने वाले मधुर गीत! फिल्म चाहे हास्यफिल्म हो, या भावुक या फिर वीररस से भरपूर या फिर सामजिक विषय पर बनी हो, मगर हर फिल्म में प्रेम गीत जरूर होते हैं. कई फिल्मों में तो छः सात प्रेमगीत हुआ करते हैं.

चालीस के दशक में बनी फिल्मों से लेकर आज की फिल्मों तक लगभग हर फिल्म में कोई न कोई प्रणयगीत जरूर होता हैं. संगीत प्रेमियोंका यह मानना है कि चालीस, पचास और साठ के दशक हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णयुग हैं. इन सालों में संगीतकार, गीतकार और गायाकों की प्रतिभा अपनी बुलंदियों पर थी.

गीता रॉय (दत्त) ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत प्रेमगीत गाये हैं मगर जिनके बारे में या तो कम लोगों को जानकारी हैं या संगीत प्रेमियों को इस बात का शायद अहसास नहीं है. इसीलिए आज हम गीता के गाये हुए कुछ मधुर मीठे प्रणय गीतों की खोज करेंगे.

सबसे पहले हम सुनेंगे इस मृदु मधुर युगल गीत को जिसे गाया हैं गीता दत्त और किशोर कुमार ने फिल्म मिस माला (१९५४)के लिए, चित्रगुप्त के संगीत निर्देशन में. “नाचती झूमती मुस्कुराती आ गयी प्यार की रात” फिल्माया गया था खुद किशोरकुमार और अभिनेत्री वैजयंती माला पर. रात के समय इसे सुनिए और देखिये गीता की अदाकारी और आवाज़ की मीठास. कुछ संगीत प्रेमियों का यह मानना हैं कि यह गीत उनका किशोरकुमार के साथ सबसे अच्छा गीत हैं. गौर करने की बात यह हैं कि गीता दत्त ने अभिनेत्री वैजयंती माला के लिए बहुत कम गीत गाये हैं.

जब बात हसीन रात की हो रही हैं तो इस सुप्रसिद्ध गाने के बारे में बात क्यों न करे? शायद आज की पीढी को इस गाने के बारे में पता न हो मगर सन १९५५ में फिल्म सरदार का यह गीत बिनाका गीतमाला पर काफी मशहूर था. संगीतकार जगमोहन “सूरसागर” का स्वरबद्ध किया यह गीत हैं “बरखा की रात में हे हो हां..रस बरसे नील गगन से”. उद्धव कुमार के लिखे हुए बोल हैं. “भीगे हैं तन फिर भी जलाता हैं मन, जैसे के जल में लगी हो अगन, राम सबको बचाए इस उलझन से”.

कुछ साल और पीछे जाते हैं सन १९४८ में. संगीतकार हैं ज्ञान दत्त और गाने के बोल लिखे हैं जाने माने गीतकार दीना नाथ मधोक ने. जी हाँ, फिल्म का नाम हैं “चन्दा की चांदनी” और गीत हैं “उल्फत के दर्द का भी मज़ा लो”. १८ साल की जवान गीता रॉय की सुमधुर आवाज़ में यह गाना सुनते ही बनता है. प्यार के दर्द के बारे में वह कहती हैं “यह दर्द सुहाना इस दर्द को पालो, दिल चाहे और हो जरा और हो”. लाजवाब!

प्रणय भाव के युगल गीतों की बात हो रही हो और फिल्म दिलरुबा का यह गीत हम कैसे भूल सकते हैं? अभिनेत्री रेहाना और देव आनंद पर फिल्माया गया यह गीत है “हमने खाई हैं मुहब्बत में जवानी की कसम, न कभी होंगे जुदा हम”. चालीस के दशक के सुप्रसिद्ध गायक गुलाम मुस्तफा दुर्रानी के साथ गीता रॉय ने यह गीत गाया था सन १९५० में. आज भी इस गीत में प्रेमभावना के तरल और मुलायम रंग हैं. दुर्रानी और गीता दत्त के मीठे और रसीले गीतों में इस गाने का स्थान बहुत ऊंचा हैं.

गीतकार अज़ीज़ कश्मीरी और संगीतकार विनोद (एरिक रॉबर्ट्स) का “लारा लप्पा” गीत तो बहुत मशहूर हैं जो फिल्म एक थी लड़की में था. उसी फिल्म में विनोद ने गीता रॉय से एक प्रेमविभोर गीत गवाया. गाने के बोल हैं “उनसे कहना के वोह पलभर के लिए आ जाए”. एक अद्भुत सी मीठास हैं इस गाने में. जब वाह गाती हैं “फिर मुझे ख्वाब में मिलने के लिए आ जाए, हाय, फिर मुझे ख्वाब में मिलने के लिए आ जाए” तब उस “हाय” पर दिल धड़क उठता हैं.

सन १९४८ में पंजाब के जाने माने संगीतकार हंसराज बहल के लिए फिल्म “चुनरिया” के लिए गीता ने गाया था “ओह मोटोरवाले बाबू मिलने आजा रे, तेरी मोटर रहे सलामत बाबू मिलने आजा रे”. एक गाँव की अल्हड गोरी की भावनाओं को सरलता और मधुरता से इस गाने में गीता ने अपनी आवाज़ से सजीव बना दिया है.

सन १९५० में फिल्म “हमारी बेटी” के लिए जवान संगीतकार स्नेहल भाटकर (जिनका असली नाम था वासुदेव भाटकर) ने मुकेश और गीता रॉय से गवाया एक मीठा सा युगल गीत “किसने छेड़े तार मेरी दिल की सितार के किसने छेड़े तार”. भावों की नाजुकता और प्रेम की परिभाषा का एक सुन्दर उदाहरण हैं यह युगल गीत जिसे लिखा था रणधीर ने.

बावरे नैन फिल्म में संगीतकार रोशन को सबसे पहला सुप्रसिद्ध गीत (ख़यालों में किसी के) देने के बाद अगले साल गीता रॉय ने रोशन के लिए फिल्म बेदर्दी के लिए गाया “दो प्यार की बातें हो जाए, एक तुम कह दो, एक हम कह दे”. बूटाराम शर्मा के लिखे इस सीधे से गीत में अपनी आवाज़ की जादू से एक अनोखी अदा बिखेरी हैं गीता रोय ने.

जिस साल फिल्म “दो भाई” प्रर्दशित हुई उसी साल फिल्मिस्तान की और एक फिल्म आयी थी जिसका नाम था शहनाई. दिग्गज संगीतकार सी रामचन्द्र ने एक फडकता हुआ प्रेमगीत बनाया था “चढ़ती जवानी में झूलो झूलो मेरी रानी, तुम प्रेम का हिंडोला”. इसे गाया था खुद सी रामचंद्र, गीता रॉय और बीनापानी मुख़र्जी ने. कहाँ “दो भाई” के दर्द भरे गीत और कहाँ यह प्रेम के हिंडोले!

गीतकार राजेंदर किशन की कलम का जादू हैं इस प्रेमगीत में जिसे संगीतबद्ध किया हैं सचिन देव बर्मन ने. “एक हम और दूसरे तुम, तीसरा कोई नहीं, यूं कहो हम एक हैं और दूसरा कोई नहीं”. इसे गाया हैं किशोर कुमार और गीता रॉय ने फिल्म “प्यार” के लिए जो सन १९५० में आई थी. गीत फिल्माया गया था राज कपूर और नर्गिस पर.

“हम तुमसे पूंछते हैं सच सच हमें बताना, क्या तुम को आ गया हैं दिल लेके मुस्कुराना?” वाह वाह क्या सवाल किया हैं. यह बोल हैं अंजुम जयपुरी के लिए जिन्हें संगीतबद्ध किया था चित्रगुप्त ने फिल्म हमारी शान के लिए जो १९५१ में प्रर्दशित हुई थी. बहुत कम संगीत प्रेमी जानते हैं की गीता दत्त ने सबसे ज्यादा गीत संगीतकार चित्रगुप्त के लिए गाये हैं. यह गीत गाया हैं मोहम्मद रफी और गीता ने. रफी और गीता दत्त के गानों में भी सबसे ज्यादा गाने चित्रगुप्त ने संगीतबद्ध किये हैं.

पाश्चात्य धुन पर थिरकता हुआ एक स्वप्नील प्रेमगीत हैं फिल्म ज़माना (१९५७) से जिसके संगीत निर्देशक हैं सलील चौधरी और बोल हैं “दिल यह चाहे चाँद सितारों को छूले ..दिन बहार के हैं..” उसी साल प्रसिद्द फिल्म बंदी का मीठा सा गीत हैं “गोरा बदन मोरा उमरिया बाली मैं तो गेंद की डाली मोपे तिरछी नजरिया ना डालो मोरे बालमा”. हेमंतकुमार का संगीतबद्ध यह गीत सुनने के बाद दिल में छा जाता है.

संगीतकार ओमकार प्रसाद नय्यर (जो की ओ पी नय्यर के नाम से ज्यादा परिचित है) ने कई फिल्मों को फड़कता हुआ संगीत दिया. अभिनेत्री श्यामा की एक फिल्म आई थी श्रीमती ४२० (१९५६) में, जिसके लिए ओ पी ने एक प्रेमगीत गवाया था मोहम्मद रफी और गीता दत्त से. गीत के बोल है “यहाँ हम वहां तुम, मेरा दिल हुआ हैं गुम”, जिसे लिखा था जान निसार अख्तर ने.

आज के युवा संगीत प्रेमी शायद शंकरदास गुप्ता के नाम से अनजान है. फिल्म आहुती (१९५०) के लिए गीता दत्त ने शंकरदास गुप्ता एक युगल गीत गाया था “लहरों से खेले चन्दा, चन्दा से खेले तारे”. उसी फिल्म के लिए और एक गीत इन दोनों ने गाया था “दिल के बस में हैं जहां ले जाएगा हम जायेंगे..वक़्त से कह दो के ठहरे बन स्वर के आयेंगे”. एक अलग अंदाज़ में यह गीत स्वरबद्ध किया हैं, जैसे की दो प्रेमी बात-चीत कर रहे हैं. गीता अपनी मदभरी आवाज़ में कहती हैं -“चाँद बन कर आयेंगे और चांदनी फैलायेंगे”.

अगर प्रेमगीत में हास्य रस को शामिल किया जाया तो क्या सुनने मिलेगा? मेरा जवाब हैं “दिल-ऐ-बेकरार कहे बार बार,हमसे थोडा थोडा प्यार भी ज़रूर करो जी”. इस को गाया हैं गीता दत्त और गुलाम मुस्तफा दुर्रानी ने फिल्म बगदाद के लिए और संगीतबद्ध किया हैं बुलो सी रानी ने. जिस बुलो सी रानी ने सिर्फ दो साल पहले जोगन में एक से एक बेहतर भजन गीता दत्त से गवाए थे उन्हों ने इस फिल्म में उसी गीता से लाजवाब हलके फुलके गीत भी गवाएं. और जिस राजा मेहंदी अली खान साहब ने फिल्म दो भाई के लिखा था “मेरा सुन्दर सपना बीत गया” , देखिये कितनी मजेदार बाते लिखी हैं इस गाने में:

दुर्रानी : मैं बाज़ आया मोहब्बत से, उठा लो पान दान अपना गीता दत्त : तुम्हारी मेरी उल्फत का हैं दुश्मन खानदान अपना दुर्रानी : तो ऐसे खानदान की नाक में अमचूर करो जी

सचिन देव बर्मन ने जिस साल गीता रॉय को फिल्म दो भाई के दर्द भरे गीतों से लोकप्रियता की चोटी पर पहुंचाया उसी साल उन्ही की संगीत बद्ध की हुई फिल्म आई थी “दिल की रानी”. जवान राज कपूर और मधुबाला ने इस फिल्म में अभिनय किया था. उसी फिल्म का यह मीठा सा प्रेमगीत हैं “आहा मोरे मोहन ने मुझको बुलाया हो”. इसी फिल्म में और एक प्यार भरा गीत था “आयेंगे आयेंगे आयेंगे रे मेरे मन के बसैय्या आयेंगे रे”.

और अब आज की आखरी पेशकश है संगीतकार बुलो सी रानी का फिल्म दरोगाजी (१९४९) के लिया संगीतबद्ध किया हुआ प्रेमगीत “अपने साजन के मन में समाई रे”. बुलो सी रानी ने इस फिल्म के पूरे के पूरे यानी १२ गाने सिर्फ गीता रॉय से ही गवाए हैं. अभिनेत्री नर्गिस पर फिल्माया गया यह मधुर गीत के बोल हैं मनोहर लाल खन्ना (संगीतकार उषा खन्ना के पिताजी) के. गीता की आवाज़ में लचक और नशा का एक अजीब मिश्रण है जो इस गीत को और भी मीठा कर देता हैं.

जो अदा उनके दर्दभरे गीतों में, भजनों में और नृत्य गीतों में हैं वही अदा, वही खासियत, वही अंदाज़ उनके गाये हुए प्रेम गीतों में है. उम्मीद हैं कि आप सभी संगीत प्रेमियों को इन गीतों से वही आनंद और उल्लास मिला हैं जितना हमें मिला.

उन्ही के गाये हुए फिल्म दिलरुबा की यह पंक्तियाँ हैं:

तुम दिल में चले आते हो
सपनों में ढले जाते हो
तुम मेरे दिल का तार तार
छेड़े चले जाते हो!

गीता जी, आप की आवाज़ सचमुच संगीत प्रेमियों के दिलों के तार छेड़ देती है.

प्रस्तुति – पराग