ए री मैं तो प्रेम दीवानी….मीरा के रंग रंगी गीता दत्त की आवाज़

Nargis

नवंबर १९३०। स्थान बंगाल का फ़रीदपुर, जो आज बंगलादेश का हिस्सा है। एक ज़मीनदार परिवार में जन्म हुआ था एक बच्ची का। १९४२ के आसपास वो परिवार साम्प्रदायिक दंगों से अपने आप को बचते बचाते आ पहुँची बम्बई नगरी। लाखों की सम्पत्ति और ज़मीन जायदाद को युंही छोड़कर बम्बई आ पहुँचे इस परिवार ने दो कमरे का एक मकान भाड़े पर लिया। गायन प्रतिभा होने की वजह से यह बच्ची हीरेन्द्रनाथ नंदी से संगीत की तालीम ले रही थी। दिन गुज़रते गए और यह बच्ची भी बड़ी होती गई। १६ वर्ष की आयु में एक रोज़ यह लड़की अपने घर पर रियाज़ कर रही थी जब उसके घर के नीचे से गुज़र रहे थे फ़िल्म संगीतकार पंडित हनुमान प्रसाद। उसकी गायन और आवाज़ से वो इतने प्रभावित हुए कि वो कौतुहल वश सीधे उसके घर में जा पहुँचे। पंडित हनुमान प्रसाद से उसकी यह मुलाक़ात उसकी क़िस्मत को हमेशा हमेशा के लिए बदलकर रख दी। पंडित प्रसाद ने फ़िल्म ‘भक्त प्रह्लाद’ में इस लड़की को पहला मौका दिया और इस तरह से फ़िल्म जगत को मिली एक लाजवाब पार्श्व गायिका के रूप में गीता रॉय, जो आगे चलकर गीता दत्त के नाम से मशहूर हुईं।

दोस्तों, आज २३ नवंबर, गीता जी के जनम दिवस के उपलक्ष पर हम ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर शुरु कर रहे हैं दस कड़ियों की एक ख़ास लघु शृंखला ‘गीतांजली’। गीता दत्त के चाहने वालो की जब बात चलती है, तो इंटरनेट से जुड़े संगीत रसिकों को सब से पहले जिस शख्स का नाम याद आता है वो हैं हमारे अतिपरिचित पराग सांकला जी। गीता जी के गीतों के प्रति उनका प्रेम, जुनून और शोध सराहनीय रहा है। और इसीलिए प्रस्तुत शृंखला के लिए उनसे बेहतर भला और कौन होता जो गीता जी के गाए १० गानें चुनें और उनसे संबंधित जानकारियाँ भी हमें उपलब्ध कराएँ। और उन्होने बहुत ही आग्रह के साथ हमारे इस अनुरोध को ठीक वैसे ही पूरा किया जैसा हमने चाहा था। तो आज से अगले दस दिनों तक हम सुनेंगे पराग जी के चुने हुए गीता जी के गाए १० ऐसे गानें जो फ़िल्माए गये हैं सुनहरे दौर के दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर। इस पूरी शृंखला के लिए शोध कार्य पराग जी ने ही किया है, हमने तो बस उनके द्वारा उपलब्ध कराई हुई जानकारी का हिंदी में अनुवाद किया है।

जब गीता रॉय शुरु शुरु में आईं थीं तो उन्होने कई फ़िल्मों में भक्ति रचनाएँ गाईं थीं। उनकी आवाज़ में भक्ति गीत इतने पुर-असर हुआ करते थे कि उन रचनाओं को सुनते हुए ऐसा लगता था कि जैसे ईश्वर से सम्पर्क स्थापित हो रहा हो! तो क्यों ना हम ‘गीतांजली’ की शुरुआत एक भक्ति रचना के साथ ही करें। और ऐसे में १९५० की फ़िल्म ‘जोगन’ का ज़िक्र करना अनिवार्य हो जाता है। जी हाँ, आज गीता जी की आवाज़ सज रही है नरगिस के होंठों पर। रणजीत मूवीटोन की इस फ़िल्म का निर्देशन किया था किदार शर्मा ने और नायक बने दिलीप कुमार। संगीतकार बुलो सी. रानी के करीयर की सब से चर्चित फ़िल्म रही ‘जोगन’ जिसमें उन्होने एक से एक मीरा भजन स्वरबद्ध किए जो गीता जी की आवाज़ पाकर धन्य हो गए। “घूंघट के पट खोल रे”, “मत जा मत जा जोगी”, “ए री मैं तो प्रेम दीवानी”, “प्यारे दर्शन दीजो आए” और “मैं तो गिरिधर के घर जाऊँ” जैसे मीरा भजन एक बार फिर से जीवित हो उठे। मीरा भजनों के अतिरिक्त इस फ़िल्म में किदार शर्मा, पंडित इंद्र और हिम्मतराय शर्मा ने भी कुछ गीत लिखे। लेकिन आज हम सुनेंगे मीरा भजन “ए री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरो दर्द ना जाने कोई”। पाठकों की जानकारी के लिए हम बता दें कि इस फ़िल्म का “मत जा जोगी” भजन गीता जी के पसंदीदा १० गीतों की फ़ेहरिस्त में शोभा पाता है जो उन्होने जारी किया था सन् १९५७ में।

दोस्तों, क्योंकि आज गीता जी के साथ साथ ज़िक्र हो रहा है अभिनेत्री नरगिस जी का, तो उनके बारे में भी हम कुछ बताना चाहेंगे। नरगिस हिंदी सिनेमा के इतिहास का एक चमकता हुआ सितारा हैं जिन्होने सिनेमा के विकास में और सिनेमा को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। १९३५ में बाल कलाकार के रूप में फ़िल्म ‘तलाश-ए-हक़’ में पहली बार नज़र आईं थीं, लेकिन उनका अभिनय का सफ़र सही मायने में शुरु हुआ सन् १९४२ में फ़िल्म ‘तमन्ना’ के साथ। ४० और ५० के दशकों में वो छाईं रहीं। युं तो वो एक डॊक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन क़िस्मत उन्हे फ़िल्म जगत में ले आई। उनकी यादगार फ़िल्मों में शामिल है ‘बरसात’, ‘अंदाज़’, ‘जोगन’, ‘आवारा’, ‘दीदार’, ‘श्री ४२०’, ‘चोरी चोरी’ और इन सब से उपर १९५७ की फ़िल्म ‘मदर इंडिया’। १९५८ में सुनिल दत्त से विवाह के पश्चात उन्होने अपना फ़िल्मी सफ़र समाप्त कर दिया और अपना पूरा ध्यान अपने परिवार पे लगा दिया। कैंसर की बीमारी ने उन्हे घेर लिया और ३ मई १९८१ को उन्होने इस संसार को अलविदा कह दिया। और इसके ठीक ५ दिन बाद, ७ मई १९८१ को प्रदर्शित हुई उनके बेटे संजय दत्त की पहली फ़िल्म ‘रॉकी’। इस फ़िल्म के प्रीमीयर ईवेंट में एक सीट ख़ाली रखी गई थी नरगिस के लिए। और आइए अब सुनते हैं नरगिस पर फ़िल्माया गीता रॉय की आवाज़ में फ़िल्म ‘जोगन’ से यह मीरा भजन जिसे सुनते हुए आप एक दैवीय लोक में पहुँच जाएँगे। आज गीता जी के जनम दिवस पर हम हिंद-युग्म की तरफ़ से उन्हे अर्पित कर रहे हैं अपने विनम्र श्रद्धा सुमन!

भजन का भाग -१

भजन का भाग -२

भजन के बोल:

ए री मैं तो प्रेम दिवानी मेरो दर्द न जाने कोये

सूलीयों पर सेज हमारी सोनो किस बिध होये
गगन मंडल पर सेज पिया की मिलन किस बिध होये
दर्द न जाने कोये
ए री मैं तो …

घायल की गत घायल जाने और न जाने कोये
मीरा के प्रभु सिर मिटे जब वैद साँवारिया होये
दर्द न जाने कोये
ए री मैं तो …

Source :

http://podcast.hindyugm.com/2009/11/blog-post_23.html

हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

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