असली गीता दत्त की खोज में…

जब मैं गीता दत्त के गाने सुनता हूँ तब दुविधा में पड़ जाता हूँ. “मैं तो गिरिधर के घर जाऊं” गानेवाली वो ही गायिका हैं क्या जिसने कहा था “ओह बाबू ओह लाला”. जो एक छोटे बालक की आवाज़ में फल तथा सब्जी बेच रही थी “फल की बहार हैं केले अनार हैं” वो ही एक विरहन के बोल सुना रही थी “आओगे ना साजन आओगे ना”! शास्त्रीय संगीत की मधुर लय और तानपर “बाट चलत नयी चुनरी रंग डारी” की शिकायत हो रही थी और तभी जनम जन्मांतर का साथ निभाने वाला गीत “ना यह चाँद होगा ना तारे रहेंगे मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे” गाया जा रहा था.

“कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ” में सचमुच किसी दूर कोने से एक बिरहन की वाणी सुनाई आ रही थी और साथ ही “चंदा चांदनी में जब चमके क्या हो, आ मिले जो कोई छम से पूछते हो क्या हमसे?” यह सवाल किया जा रहा था. रेलगाडी की धक् धक् पर चलती हुई रेहाना गीता की आवाज़ पर थिरक कर गा रही थी” धक् धक् करती चली हम सब से कहती चली जीवन की रेल रे मुहब्बत का नाम हैं दिलों का मेल रे”. अपने आप से सवाल किया जा रहा था “ए दिल मुझे बता दे तू किस पे आ गया हैं?” और सखी को छेड़ने की नटखट अदा थी “अँखियाँ भूल गयी हैं सोना”. सोलह साल की लड़की का बांकपन था “चन्दा खेले आँख मिचौली बदली से नदी किनारे, दुल्हन खेले फागन होली” और “तोरा मनवा क्यों घबराएँ रे” में एक अनुभव की पुकार थी. “मेरा सुन्दर सपना बीत गया” गानेवाली “मेरा नाम चिन चिन चू” के जलवे बिखर रही थी. उसी वक्त “कल रात पिया ने बात कहीं कुछ ऐसी, मतवाला भंवरा कहे कली से जैसी” के मदहोश बोल सुनाये जा रहे थे.

युगल गीतों की बात की जाए तो एक तरफ “कल साजना मिलना यहाँ, हैं तमाम काम धाम रे आज ना आज ना” की स्वाभाविक शिकायत की जा रही थी वहीँ दूसरी ओर “तुमसे ही मेरी ज़िन्दगी मेरी बहार तुम” के स्वर गूँज रहे थे. “अरमां भरे दिल की लगन तेरे लिए हैं” के सुरीले स्वरों के साथ “ख्यालों में किसीके इसी तरहे आया नहीं करते” की तकारार हो रही थी. “रात हैं अरमान भरी और क्या सुहानी रात हैं, आज बिछडे दिल मिले हैं तेरा मेरा साथ हैं” के रोमांचक ख्यालों के साथ साथ राधा और कृष्ण के रंग में डूबा हुआ “आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे ब्रिज में अकेली राधे खोयी खोयी फिरे” की व्याकुल पुकार भी थी.

“मेरा दिल जो मेरा होता पलकों पे पकड़ लेती” के आधुनिक और काव्यात्मक खयालों के साथ साथ “धरती से दूर गोरे बादलों के पार आजा आजा बसाले नया संसार” की सुन्दर कविकल्पना भी थी. “मिया मेरा बड़ा बेईमान मेरी निकली रे किस्मत खोटी” की नोक-झोंक के साथ “मुझको तुम जो मिले ये जहां मिल गया” की खुशियाँ भी शामिल थी. “मोसे चंचल जवानी संभाली नहीं जाए” के लगभग कामुक भावों के साथ साथ “मेरे मुन्ने रे सीधी राह पे चलना जुग जुग तक फूलना फलना” का आशीर्वाद भी था.

नायक को कह रही थी “राजा मोहे ले चल तू दिल्ली की सैर को” और फिर कोई नटखट साजन “लखनो चलो अब रानी बम्बई का बिगडा पानी” की शिकायत करा रहा था. सखियों के साथ “चलो पनिया भरन को पतली कमरिया पे छलके गगरिया हो” गाकर नदी किनारे जाने की बातें और शादी में बिदाई के समय “बाबुल का मोरे आँगन बिछडा छूटी रे मोरी सखियाँ” की व्याकुलता थी. नायक के साथ सीटी बजाना सीखते सीखते “सुन सुन सुन जालिमा” गाया जा रहा था और गाँव की लोकधुन पर “नदिया किनारे मोरा डेरा मशाल जले सारी रतिया” गुनगुनाया जा रहा था.

“गायें गायें हम नए तराने गायें” के आधुनिक स्वरों के साथ “जमुना के तीर कान्हा आओ रो रो पुकारे राधा मीठी मीठी बंसिया बजाओ” की पुकार भी थी. हौले हौले ..हाय डोले.. के बोलों में बंगाल का जादू था और उड़ पुड जानिया में पंजाब की मिटटी की खुशबू थी. प्यार की प्यास के हिंदी गाने (उत्तर में हैं खडा हिमालय) में “आमार शोनार बांगला देश” की मधुर तान छेड़ रही थी और बंगाली फिल्म में “तेरे लिए आया हैं लेके कोई दिल” के हिंदी बोल सुना रही थी. “तालियों ना ताले” के सुरों पर गरबा का रास रचाया जा रहा था और मराठी में “गणपति बाप्पा मोरया, पुढल्या वर्षी लौकर या” गाकर गणेश भगवान् की आरती कर रही थी. माला सिन्हा की बनाई हुई नेपाली फिल्म में गाने गाये और फिर “जान लेके हथेली पे चल बैं जमाने से ना डरबएं राम” भोजपुरी में गा रही थी.

ममता गा रही थी “नन्ही कली सोने चली हवा धीरे आना” और एक नर्तिका की आवाज़ थी “माने ना माने ना माने ना , तेरे बिन मोरा जिया ना माने”. “गुनगुन गुनगुन गुंजन करता भंवरा तुम कौन संदेसा लाये” की पार्वती थी और “एक नया तराना एक नया फ़साना एक नयी कहानी हूँ मैं, एक रंग रंगीली एक छैल छबीली मदमस्त जवानी हूँ मैं” की क्लब डांसर भी थी. मोरनी बनकर कह रही थी “आजा छाये कारे बदरा” और “आज नहीं तो कल बिखरेंगे ये बादल ओह रात के भूले हुए मुसाफिर सुबह हुई घर चल अब घर चल रे” गाकर हौसला बढा रही थी.

पाश्चात्य धुन पर थिरकता हुआ गीत “मुझे हुज़ूर तुमसे प्यार हैं तुम्हीं पे ज़िन्दगी निसार हैं” और हिंदुस्थानी संगीत का असर था “मेरे नैनों में प्रीत मेरे होंठों पे गीत मेरे सपनों में तुम ही समाये”. ऐसे कई अलग अलग प्रकार के भावों के गीत गाती थी कि सुननेवाला दंग रह जाएँ. “कभी अकड़ कर बात न करना हमसे अरे मवाली ” गानेवाली गायिका उसी संगीतकार के साथ मिल कर “जय जगदीश हरे” को अजरामर कर देती थी. रफी साहब के साथ तो ऐसे रसीले और सुरीले गीत गाये हैं कि उनका कोई जवाब नहीं. “अच्छा जी माफ़ कर दो, थोडा इन्साफ कर दो” गाया था फिल्म मुसाफिरखाना के लिए और उन्हीं के साथ “चुपके से मिले प्यासे प्यासे” जैसा तरल और स्वप्नील गीत भी गाया. बालक के जन्मदिन के शुभ अवसरपर एक बढिया सा गीत गाया था “पोम पोम पोम बाजा बोले ढोलक धिन धिन धिन, घडी घडी यह खुशियाँ आये बार बार यह दिन”.

गीता को हमसे दूर जाकर पैंतीस से भी ज्यादा साल गुज़र चुके हैं. वैसे तो १९५० के मध्य से ही कुछ न कुछ कारणवश वो फ़िल्मी दुनिया से धीरे धीरे अलग हो रही थी. आज की तारीख में कल का बना हुआ गाना पसंद न करने वाले लोग भला ऐसे गानों को क्यूँ याद रखे और सुने जो शायद उनके जन्म लेने से भी पहले बने थे. सीधी सी बात यह हैं कि उन गीतों में अपनापन हैं, एक मिठास हैं और एक शख्सियत हैं जिसने हरेक गाने को अपने अंदाज़ में गाया. नायिका, सहनायिका, खलनायिका, नर्तकी या रस्ते की बंजारिन, हर किसी के लिए अलग रंग और ढंग के गाने गाये. “नाचे घोड़ा नाचे घोड़ा, किम्मत इसकी बीस हज़ार मैं बेच रही हूँ बीच बाज़ार” आज से साठ साल पहले बना हैं और फिर भी तरोताजा हैं. “आज की काली घटा” सुनते हैं तो लगता है सचमुच बाहर बादल छा गए हैं.

मुग्ध कन्या भानुमती पर फिल्माया गए गाने “कबूतर आजा आजा रे” और “झनन झनन झनवा मोरे बिछुआ झनन बाजे रे” ऐसी मिठास से बने हैं कि बार बार सुनने को दिल चाहता हैं. जाल के लिए साहिर साहब की रचना “जोर लगाके हैय्या पैर जमाके हैय्या” आज भी याद किया जाता है जब कोई कठिन काम करने के लिए लोग मिल जाते हैं. “सुन सुन मद्रासी छोरी के तेरे लिए दिल जलता” का जवाब दिया “चल हट रे पंजाबी छोरे के तू मेरा क्या लगता?”. अलग किस्म के गाने , अलग कलाकार, अलग संगीतकार, अलग सहयोगी गायक, और अलग उन गानों के लेखक; मगर गीता दत्त का अपना ही अंदाज़ था. किसी ने कहा कि उनकी आवाज़ में शहद की मिठास और मधुमक्खी की चुभन का मिश्रण था. कोई कह गया कि ठंडी हवा में काली घटा समाई हुई थी. कोई कहता हैं गीता गले से नहीं दिल से गाती थी!

बीस से भी कम उम्र में मीराबाई के और कबीर के भजन जिस भाव और लगन से गाये उसी लगन से “दिल की उमंगें हैं जवाँ” जैसा फड़कता हुआ और मस्ती भरा गाना भी गाया. (इसी गाने में उन्हों ने कुछ शब्द भी कहें जो सुनाने लायक हैं). एक तरफ “जवानियाँ निगोडी यह सताएं, घूँघट मोरा उड़ उड़ जाएँ” और उसी फिल्म में गाया” अब कौन सुनेगा हाय रे दुखे दिल की कहानी”. ऐसे कितने ही गाने हैं जो पहली बार सुनने के बावजूद भी लगता हैं कि कितना दिलकश गाना हैं, वाह वाह! “बूझो बूझो ए दिल वालों कौन सा तारा चाँद को प्यारा” बिलकुल संगीतकार पंकज मलिकके अंदाज़ में गाया था फिल्म ज़लज़ला में!

भले गाना पूरा अकेले गाती हो या फिर कुछ थोड़े से शब्द, एक अपनी झलक जरूर छोड़ देती थी. “पिकनिक में टिक टिक करती झूमें मस्तों की टोली” ऐसा युगल गीत हैं जिसमें मन्ना डे साहब और साथी कलाकार ज्यादा तर गाते हैं , और गीता दत्त सिर्फ एक या दो पंक्तियाँ गाती हैं. इस गाने को सुनिए और उनकी आवाज़ की मिठास और हरकत देखिये. ऐसा ही गाना हैं रफी साहब के साथ “ए दिल हैं मुश्किल जीना यहाँ” जिसमे गीता दत्त सिर्फ आखिरी की कुछ पंक्तियाँ गाती हैं. “दादा गिरी नहीं चलने की यहाँ..” जिस अंदाज़ में गाया हैं वो अपने आप में गाने को चार चाँद लगा देता हैं. ऐसा ही एक उदाहरण हैं एक लोरी का जिसे गीता ने गया हैं पारुल घोष जी के साथ. बोल हैं ” आ जा री निंदिया आ”, गाने की सिर्फ पहली दो पंक्तियाँ गीता के मधुर आवाज़ मैं हैं और बाकी का पूरा गाना पारुल जी ने गाया हैं.

बात हो चाहे अपने से ज्यादा अनुभवी गायकों के साथ गाने की (जैसे की मुकेश, शमशाद बेग़म और जोहराजान अम्बलावाली) या फिर नए गायकोंके साथ गाने की (आशा भोंसले, मुबारक बेग़म, सुमन कल्याणपुर, महेंद्र कपूर या अभिनेत्री नूतन)! न किसी पर हावी होने की कोशिश न किसीसे प्रभावित होकर अपनी छवि खोना. अभिनेता सुन्दर, भारत भूषण, प्राण, नूतन, दादामुनि अशोक कुमार जी और हरफन मौला किशोर कुमार के साथ भी गाने गाये!

चालीस के दशक के विख्यात गायक गुलाम मुस्तफा दुर्रानी के साथ तो इतने ख़ूबसूरत गाने गाये हैं मगर दुर्भाग्य से उनमें से बहुत कम गाने आजकल उपलब्ध हैं. ग़ज़ल सम्राट तलत महमूद के साथ प्रेमगीत और छेड़-छड़ भरे मधुर गीत गायें. इन दोनों के साथ संगीतकार बुलो सी रानी द्वारा संगीतबद्ध किया हुआ “यह प्यार की बातें यह आज की रातें दिलदार याद रखना” बड़ा ही मस्ती भरा गीत हैं, जो फिल्म बगदाद के लिए बनाया गया था. इसी तरह गीता ने तलत महमूद के साथ कई सुरीले गीत गायें जो आज लगभग अज्ञात हैं.

जब वो गाती थी “आग लगाना क्या मुश्किल हैं” तो सचमुच लगता हैं कि गीता की आवाज़ उस नर्तकी के लिए ही बनी थी. गाँव की गोरी के लिए गाया हुआ गाना “जवाब नहीं गोरे मुखडे पे तिल काले का” (रफी साहब के साथ) बिलकुल उसी अंदाज़ में हैं. उन्ही चित्रगुप्त के संगीत दिग्दर्शन में उषा मंगेशकर के साथ गाया “लिख पढ़ पढ़ लिख के अच्छा सा राजा बेटा बन”. और फिर उसी फिल्म में हेलन के लिए गाया “बीस बरस तक लाख संभाला, चला गया पर जानेवाला, दिल हो गया चोरी हाय…”!

सन १९४९ में संगीतकार ज्ञान दत्त का संगीतबद्ध किया एक फडकता हुआ गीत “जिया का दिया पिया टीम टीम होवे” शमशाद बेग़म जी के साथ इस अंदाज़ में गाया हैं कि बस! उसी फिल्म में एक तिकोन गीत था “उमंगों के दिन बीते जाए” जो आज भी जवान हैं. वैसे तो गीता दत्त ने फिल्मों के लिए गीत गाना शुरू किया सन 1946 में, मगर एक ही साल में फिल्म दो भाई के गीतों से लोग उसे पहचानने लग गए. अगले पांच साल तक गीता दत्त, शमशाद बेग़म और लता मंगेशकर सर्वाधिक लोकप्रिय गायिकाएं रही. अपने जीवन में सौ से भी ज्यादा संगीतकारों के लिए गीता दत्त ने लगभग सत्रह सौ गाने गाये.

अपनी आवाज़ के जादू से हमारी जिंदगियों में एक ताज़गी और आनंद का अनुभव कराने के लिए संगीत प्रेमी गीता दत्त को हमेशा याद रखेंगे.

प्रस्तुति – पराग
(पराग गीता जी के बहुत बड़े भक्त हैं, उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर एक वेबसाइट भी बनाई है जो गीता जी की अमर आवाज़ को समर्पित है…गीता दत्त के जीवन से जुडी तमाम जानकारियाँ आप हमारी साईट पर पा सकते हैं, पता है गीतादत्त डौट कौम

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2 Responses to “असली गीता दत्त की खोज में…”

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  2. rashmi says:

    universal authority – proved again n will be same in future too

    the great legend and her fans are no less precious

    The simple singing of legend and same simple writings n work of your team is same like colours of rainbow

    she sang our emotions very easily and you all write our feelings for the legend so easily too.

    hats off to you all and a salute too

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