मेरा दिल जो मेरा होता….गीता जी की आवाज़ और गुलज़ार के शब्द, जैसे कविता में घुल जाए अमृत

Tanuja

गीता दत्त जी के गाए गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस ख़ास लघु शृंखला ‘गीतांजली’ की अंतिम कड़ी पर। गीता दत्त डोट कोम के सहयोग से इस पूरे शृंखला में आप ने ना केवल गीता जी के गाए अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए हुए गीत सुनें, बल्कि उन अभिनेत्रियों और उन गीतों से संबंधित तमाम जानकारियों से भी अवगत हो सके। अब तक प्रसारित सभी गीत ५० के दशक के थे, लेकिन आज इस शृंखला का समापन हो रहा है ७० के दशक के उस फ़िल्म के गीत से जिसमें गीता जी की आवाज़ आख़िरी बार सुनाई दी थी। यह गीत है १९७१ की फ़िल्म ‘अनुभव’ का, “मेरा दिल जो मेरा होता”। और यह गीत फ़िल्माया गया था तनुजा पर। इस फ़िल्म के गीतों पर और चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आइए कुछ बातें तनुजा जी की हो जाए! तनुजा का जन्म बम्बई के एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक कवि थे और माँ शोभना समर्थ ३० और ४० के दशकों की एक मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री। जहाँ शोभना जी ने अपनी बेटी नूतन को लौंच किया १९५० की फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ में, ठीक वैसे ही उन्होने अपनी छोटी बेटी तनुजा को बतौर बाल कलाकार कास्ट किया था उसी फ़िल्म में। उसके बाद तनुजा को पढ़ाई लिखाई के लिए विदेश भेजा गया जहाँ पर उन्होने अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और जर्मन भाषाओं की तालीम प्राप्त की। वापस आकर १९६० की फ़िल्म ‘छबिली’ में अपनी बड़ी बहन नूतन के साथ उन्होने अभिनय किया, जिसका निर्देशन उनकी माँ ने ही किया था। इस फ़िल्म में गीता दत्त ने नूतन के साथ अपना एक्लौता डुएट गाया था। इसके एक दशक बाद बासु भट्टाचार्य की फ़िल्म ‘अनुभव’ में तनुजा का किरदार बहुत सराहा गया। तनुजा ने इस फ़िल्म की शूटिंग् के लिए अपना अपार्टमेंट बासु दा को दे रखा था, जिसके बदले बासु दा ने उन्हे दी एक यादगार भूमिका।

‘अनुभव’ फ़िल्म के गीतों की अगर बात करें तो वह एक ऐसा दौर था जब गीता दत्त बीमार हो चुकीं थीं। उनके पति गुरु दत्त का स्वर्गवास हो चुका था और उन पर अपने तीन छोटे छोटे बच्चों को बड़ा करने और ‘गुरु दत्त फ़िल्म्स’ के कर्ज़ों को चुकाने की ज़िम्मीदारी आन पड़ी थी। ऐसी स्थिति में फ़िल्म ‘अनुभव’ उनके जीवन में एक रोशनी की तरह आई और फिर बार फिर उन्होने यह साबित किया कि अब भी उनकी आवाज़ में वही अनूठा अंदाज़ बरक़रार है जो ५० और ६० के दशकों में हुआ करती थी। ‘अनुभव’ के गानें बेहद लोकप्रिय हुए और आज जब भी गीता जी के गाए गीतों की कोई सी.डी रिलीज़ होती है तो इस फ़िल्म का एक गीत उसमें ज़रूर शामिल किया जाता है।

गीता दत्त के गाए ‘अनुभव’ फ़िल्म के तीनों गानें अपने आप में मास्टरपीस हैं और इन गीतों की चर्चा घंटों तक की जा सकती है। हमें याद रखनी चाहिए कि उस समय बाक़ी सभी संगीतकार उनसे मुँह मोड़ चुके थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि गीता जी ने इन गीतों में जान डाल दी थी और वह भी उस समय जब कि उनकी अपनी तबीयत बहुत ख़राब थी और ख़ुद अपनी ज़िंदगी की तमाम परेशानियों से झूझ रही थीं। किसी तरह का नाटकीय या बहुत ज़्यादा जज़्बाती ना होते हुए भी उन्होने इन गीतों में वो अहसासात भरे हैं कि तनुजा के किरदार के साथ पूरा पूरा न्याय हुआ है। “मुझे जाँ ना कहो मेरी जाँ” गीत के अंत में उनकी हँसी कितनी नैचरल लगती है, है न? इस फ़िल्म में संगीत था कमचर्चित संगीतकार कानु रॉय का, जिनके संगीत निर्देशन में गीता जी की ही आवाज़ में फ़िल्म ‘उसकी कहानी’ का गीत “आज की काली घटा” हमने आपको गीता जी की पुण्य तिथि २० जुलाई को सुनवाया था।

दुर्भाग्यवश ‘अनुभव’ की कामयाबी उस दीपक की तरह थी जो बुझने से पहले दमक उठती है। गीता जी जल्द ही इस दुनिया-ए-फ़ानी को छोड़ कर चली गईं अपनी अनंत यात्रा पर, और पीछे छोड़ गईं वो असंख्य मीठी सुरीली यादें जिनके सहारे आज हम कभी थिरक उठते हैं, कभी मचल जाते हैं, कभी उनकी रोमांटिक कॉमेडी हमें गुदगुदा जाती हैं, तो कभी उनके भक्ति रस वाले गीतों में डूब कर हम ईश्वर को अपने ही अंदर महसूस करने लगते हैं, और कभी उनके दुख भरे गीतों को सुनते हुए दर्द से दिल भर उठता है यह सोचते हुए कि क्यों इस महान और बेमिसाल गायिका को इतने दुख ज़िंदगी ने दिए! दोस्तों, गीता जी पर केन्द्रित यह शृंखला समाप्त करते हुए आइए सुनते हैं ‘अनुभव’ फ़िल्म का यह गीत, और चलते चलते एक बार फिर से हम आभार व्यक्त करते हैं पराग सांकला जी का इस पूरे शृंखला के लिए गानें और तथ्य संग्रहित करने के लिए। इस शृंखला के बारे में आप अपने विचार हमें टिप्पणी के अलावा hindyugm@gmail.com की ई-मेल पते पर भी भेज सकते हैं। धन्यवाद!

गीत के बोल हैं:

मेरा दिल जो मेरा होता
पलकों पे पकड़ लेती
होंठों पे उठा लेती
हाथों मे. खुदा होता
मेरा दिल …

सूरज को मसल के मैं
चन्दन के तरह मलती
सोने का बदन ले कर
कुन्दन की तरह जलती
इस गोरे से चेहरे पर
आइना फ़िदा होता
मेरा दिल …

बरसा है कहीं पर तो
आकाश समुन्दर में
इक बूँद है चन्दा की
उतरे न समुन्दर में
दो हाथों के ओख में ये
गिर पड़ता तो क्या होता
हाथों में खुदा होता
मेरा दिल …

Source :

http://podcast.hindyugm.com/2009/12/blog-post_04.html

हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

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One Response to “मेरा दिल जो मेरा होता….गीता जी की आवाज़ और गुलज़ार के शब्द, जैसे कविता में घुल जाए अमृत”

  1. Dr Mohan Dev Saini ( Saudi arabia ) says:

    Parag ji,

    Reading this article, leaves with very heavy& sad mood ,& also tells the brilliant tallent of Geeta ji.

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