गीता दत्त

लेखिका: पुन्या ‌‌श्रीवास्तव
ये लेख लेखिका के ब्लौग पोस्ट से उनकी अनुमति से पेश किया जा रहा है

यह नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर उभरती है – सीपिया टोन में रंगी एक तस्वीर – एक साधारण पर आकर्षक चेहरा, नाक में एक छोटी लौंग, माथे पर एक मध्यम आकार की बिंदी और कानों में झुमके।
Geeta Dutt
पर इस चेहरे में सबसे आकर्षक चीज़ है – होठों पर एक अधखिली मुस्कान।

वो मुस्कान – जो गीता दत्त नामक व्यक्तित्व का जीवन समावेश है।

करीब २ साल पहले, रात को लेटे हुए AIR FM Gold सुन रही थी। उन्ही दिनों मेरी दिलचस्पी पुराने गीतों और फिल्मों की तरफ बढ़नी शुरू हुई थी. रेडियो सुनते सुनते पता नहीं क्या सोच रही थी कि एक गीत बजने लगा – “तद़बीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले…”

और उस एक पल ने मेरा सारा ध्यान उस आवाज़ की ओर ला खड़ा किया – एक अन्जानी आवाज़।

अभी तक पुराने दौर की गायिकाओं के रूप में सिर्फ आशा – लता की आवाज़ से परिचित थी।पर यह नयी आवाज़ किसकी है? वह गीत ख़त्म हो गया पर वह आवाज़ मन में बैठ गई।

Google पर ढूँढने पर उस गीत के बारे में जानकारी मिली:

फिल्म – बाज़ी

संगीत – सचिन देव बर्मन
गायिका – गीता दत्त

और अगले ही पल Google Image पर यह नाम टाइप करके enter दबा दिया।

कौन है इस अनुपम, अद्वितीय आवाज़ की मालिक -गीता दत्त?

और सबसे पहली तस्वीर वही – सीपिया टोन में रंगी हुई – अधखिली मुस्कान के साथ – गीता दत्त।

तब से अब तक, मेरे लिए गीताजी की पहचान बन गई है वह तस्वीर और वह गीत – “तद़बीर से…”

1950 की बात है – रिकॉर्डिंग स्टूडियो में इसी गीत की रिकॉर्डिंग चल रही थी। फिल्म के निर्देशक भी वहां उपस्थित थे – गुरु दत्त। गीत की रिकॉर्डिंग तो ख़त्म हो गयी, पर वह आवाज़ गुरु दत्त के मन में बैठ गयी।

आज पचास और साठ का दशक हिंदी सिनेमा का ‘स्वर्णिम युग’ कहलाता है और जो नाम उस युग की पहचान के रूप में सामने आते हैं, उनमें से मेरा प्रिय एक नाम है – गुरु दत्त!

आज भी हिंदी सिनेमा में गुरु दत्त का स्वर्णिम स्थान है। उनकी ‘प्यासा’, ‘कागज़ के फूल’ और ‘साहिब़ ब़ीबी और गुलाम’ कालजयी कृतियाँ घोषित हो चुकी हैं।

पर गीता दत्त?

इन कालजयी कृतियों में महत्त्वपूर्ण योगदान के बाद भी, यह नाम समय की लहरों में डूब-सा गया है.

यह द़ीगर की बात है कि 1950 से पहले नज़ारा इससे ठीक उल्टा था। गीता रॉय – हिंदी, गुजराती और बंगला संगीत में यह नाम स्थापित हो चुका था। और गुरु दत्त – गुमनामी से निकल कर अपनी पहचान तलाशता एक नाम।

और दिलचस्प बात यह है कि मैं इनमें से जब भी कोई एक नाम सोचती हूँ, तो दूसरा नाम स्वतः ही जेहन में दौड़ा चला आता है।’ गुरु – गीता’ – मेरे लिए ये एक ही नाम के दो पहलू हैं – एक दुसरे के पूरक।

बहरहाल, आज भी जब कभी हम रेडियो पर य़दा कदा “ऐ दिल मुझे बता दे…”, “मेरा नाम चिन चिन चू…”, “बाबूजी धीरे चलना…” या “ठंडी हवा काली घटा…” सुनते हैं, तो पैर अपने आप ही थिरक उठते हैं और हम खुद को गुनगुनाने से रोक नहीं पाते।पर वह आवाज़ हम में से कितने लोग जानते हैं – पहचानते हैं?

और ये तो सिर्फ कुछ चुनिन्दा गीत हैं जो रेडियो पर सुनाई दे जाते हैं. गीता दत्त के गीतों का संसार इनसे कई गुना बड़ा है. फिर भी वह संसार आज गुमनामी की ओर अग्रसर है.
जहाँ आज भी आशा – लता जी के कई पुराने गीत रेडियो, टी।वी., यहाँ तक कि reality shows में भी गाये जाते हैं – वहां से गीताजी का नाम क्यों नदारद है?

जबकि गीता और लता – ये ही नाम ऐसे थे जिन्होंने 1950-60 के बेहतरीन गीतों को अपनी आवाज़ दी है। आशा जी को तो इन महारथियों के बीच अपनी जगह बनाने में काफी वक़्त लग गया था। और अगर इस गुमनामी की वजह – गीताजी को गुज़रे सालों हो गए हैं – है, तो फिर क्यों आज भी रफ़ी साहब और किशोरदा संगीत प्रेमियों के मन में जीवित हैं?

आज भी जब कहीं पुराने गीतों की महफिल सजती है, तो मैं तत्परता से गीताजी का नाम ढूंढती हूँ। किसी अखबार में पुराने दौर के संगीत के ऊपर लेख पढ़ती हूँ, तो उसमें गीताजी को खोजती हूँ।orkut या facebook पर पुराने गीतों की communities में गीता दत्त का ज़िक्र तलाशती हूँ। पर 100 में से 99 बार निराशा ही हाथ लगती है।

मुझे यह सोचकर सच में बेहद दुःख होता है की लता, आशा, रफ़ी, किशोर, मुकेश और मन्ना डे की पंक्ति से गीता दत्त जी का नाम क्यों लापता हो गया? कैसे लापता हो गया?

मुझे इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढे से भी नहीं मिल पा रहा है।

जब कभी ‘बादबान’ का “कैसे कोई जीए ज़हर है ज़िन्दगी…” सुनती हूँ तो मन भर आता है।

‘अनुभव’ का “मुझे जान न कहो..” मेरी पलकें भिगा जाता है।

‘साहिब बीबी और गुलाम’ का “कोई दूर से आवाज़ दे..” सुनकर रूह काँप उठती है।

‘कागज़ के फूल’ का “वक़्त ने किया क्या हसीं सितम…” सुनकर गला रुंध जाया है।

और ‘दो भाई’ का “खो के हमको पा न सकोगे, होंगे जहाँ हम आ न सकोगे, तढ़पोगे, फरियाद करोग, एक दिन हमको याद करोगे…” मन में एक टीस जगा जाता है…

कि सच में हमने गीताजी को खो दिया है। चाहकर भी उन्हें वापस नहीं ला सकते। केवल उनकी आवाज़ के माध्यम से उन्हें याद कर सकते हैं।

और लोगों से फरियाद कर सकते हैं कि कुछ करके गीताजी की याद बनाये रखें।

यह एह प्रशंसक का नम्र निवेदन है.

2 Responses to “गीता दत्त”

  1. Hildebrand says:

    Lovely post Punya ji. Names of artists of the 50s like her, Shamshad ji, G.M. Durrani sahab and others should be promoted by HMV, TV and Radio Channels otherwise our heritage shall be left in the hands of a few only or may disappear also.

  2. Punya says:

    Sorry for rplying late..
    you r vry much rite, sir..
    I really want people tp wake up n recognise such huge contributions to music by artistes like Geetaji.. thus, this request to all to keep her alive in our hearts..

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