“कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ “………………..
ऐसा लगता है जैसे किसी ने ख्वाब के बीच में ही नींद से जगा दिया हो। अभी तो उस मखमल से भी अधिक मुलायम आवाज़ में कुछ और तराने सजने बाकी थे। गीता दत्त जी को हमारे बीच से गए हुए चालीस बरस बीत गए, लेकिन ऐसा लगता है कि वे कहीं आस-पास ही मौजूद हैं और उनकी कसक भरी आवाज़ हर वक़्त कानों में शहद घोलती सी लगती है। गीता जी गले से नहीं दिल से गाती थीं और इसीलिए उनके गीत हमेशा सोज़ भरे होते थे और एक एक शब्द से मानो दर्द और पीड़ा रिसती थी।
गीता जी ने संगीतकार हनुमान प्रसाद जी के निर्देशन में फिल्म “भक्त प्रह्लाद” में एक कोरस गीत में दो पंक्तियाँ गाकर संगीत के अपने सफ़र की शुरुआत की। उनके इसी गीत को सुनकर संगीतकार एस. डी बर्मन दा ने उन्हें फिल्म “दो भाई” में गाने का मौका दिया और पहली ही फिल्म से इस रेशमी आवाज़ ने सुनने वालों को दीवाना सा कर दिया। इस फिल्म के गीत “मेरा सुंदर सपना बीत गया” ने तो रिकॉर्ड बिक्री के अगले पिछले सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए. इसके बाद तो गीता जी ने एक के बाद एक कर्णप्रिय गीतों की झड़ी सी लगा दी। “जोगन”, “बावरे नैन”, “शर्त”, “बाज़ी”, “जाल”, “आनंदमठ”, “अनारकली”, और “आर पार” गीता जी के शुरूआती दौर की कुछ फिल्में हैं, और इन फिल्मों के गीत गवाह हैं उनकी बेमिसाल गायन प्रतिभा के। गीता जी की संगीत साधना ने सिने दर्शकों को “देवदास”, “साहिब, बीवी और गुलाम”, “प्यासा”, “हावड़ा ब्रिज”, “अदालत”, “कागज़ के फूल”, “कला बाज़ार”, “सुजाता” और “अनुभव” जैसी सुंदर संगीत से सजी फिल्मों की अनुपम सौगात दी है।
गीता जी ने अपने फ़िल्मी सफ़र में 1500 से भी अधिक गीत अपने नाम किये हैं। उनकी ख़ास बात यह थी कि वे हर तरह के गीत गाने के लिए खुद को तैयार कर लेती थीं। चाहे भक्ति गीत हो, नृत्य गीत हो, ग़ज़ल हो अथवा लोरी गीत, गीता जी की आवाज़ में ढलकर हर गीत कुछ ख़ास बन जाता था। यह गीता जी की गायन प्रतिभा का कमाल ही है कि उन्होंने हिंदी और बंगला के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषायों में भी खूबसूरत गीत गाये हैं। साथ ही कई गैर फ़िल्मी गीत भी उन्होंने गाये हैं। किसी ठंडी बयार की तरह बहती गीता जी की आवाज़ में सजा हर गीत सुनने वाले को शीतलता का अहसास करा जाता है। संगीतकार ‘ओ. पी. नय्यर जी ने गीता जी के बारे में एक बार कहा था कि ” पश्चिमी और भारतीय ध्रुपद संगीत, दोनों को ही अपनी दिलकश आवाज़ से गीता जानदार बना देती थीं। कैबरे संगीत से लेकर तो पॉप गीत तक, अपनी गायकी की इस विविधता के चलते गीता हर संगीतकार की ज़रुरत बन बैठी थीं। वे हमारे लिए एक संपत्ति की तरह थीं”.
लेकिन फ़िल्मी दुनिया एक माया नगरी की तरह है और कोई नहीं जनता कि यहाँ कब किसका पलड़ा दूसरे से भारी पड़ जाये। 1947 से 1959 तक, सिने जगत पर एकछत्र राज करने वाली गीता जी को भी प्रतिद्वंदिता और परिस्थितियों ने परास्त कर दिया। वैवाहिक जीवन की जटिलता और पति गुरु दत्त की असमय मृत्यु ने गीता जी को तोड़कर रख दिया। उसी दौर में लता मंगेशकर और आशा भोसले जैसी गायिकाओं के आने से गीता जी के फ़िल्मी करिअर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसे पेशेवर जगत की विडम्बना ही कहिये कि कभी उनकी आवाज़ के दीवाने रहे सचिन देव बर्मन और ओ पी नय्यर जैसे संगीतकारों ने भी उन्हें बिसरा दिया।
गीता जी की असमय मृत्यु ने एक कालजयी कलाकार को हमेशा के लिए हमसे दूर कर दिया। जीवन के महज़ 41 वसंत देखने वाली इस फनकार ने इतने कम समय में भी सुमधुर गीतों का ऐसा अनमोल खज़ाना संगीत प्रेमियों को बख्शा है, जिसे पाना और सहेजना हर संगीत प्रेमी के लिए गुरूर का सबब है।
आभार : इस हृदय लेख के लिए हम अजित सिधु जी के हार्दिक आभारी है