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हमको छोड़ के कहा जाओगे

Friday, July 19th, 2013

Geeta Dutt

अगर मैं सवाल करू के, भारतीय सिनेमा की वर्सेटाइल गायिका कौन? तो ज्यादा तर लोगों की राय होगी, आशा भोसले| जी हाँ! क्यों नहीं? आशा जी जरुर एक अष्टपैलू गायिका है| लेकिन अगर मैं सवाल थोडा बदल दूं, जैसे के भारतीय सिनेमा की पहिली वर्सेटाइल गायिका कौन? तो क्या जवाब होगा? हा, इसलिए आपको भारतीय सिनेमा संगीत की ज्यादा जानकारी होनी चाहिए, जरा मेहेनत के बाद आप जरुर समझ जायेंगे के वो गायिका कोई और नहीं, गीता दत्त जी है, जिनकी इकतालीसवी पूण्यतिथि आज के दिन है|

१९४६ में रिलीज हुवी फिल्म भक्त प्रल्हाद में उन्होंने सिर्फ १६ साल की उम्र में अपना करियर बतौर गायिका के नाम से शुरू किया| लेकिन गीता जी की दखल ली गयी, १९४७ में, फिल्म का नाम था दो भाई| मेरा सुंदर सपना बीत गया, और याद करोगे जैसे नायाब गीतोंसे गीता जी की आवाज भारत के हर एक कोने में पहुंची| बाद में उन्होंने हुस्नलाल-भगतराम, बुलो सी रानी(जोगन-१९५०), पंकज मालिक, नय्यर, बर्मन दा, हंसराज बहल, रवी, सलिल चौधरी, खेमचंद प्रकाश(तमाशा-१९५२), मदनमोहन(भाई भाई-१९५७) जैसे बड़े संगीतकारों के साथ काम किया|

गीता जी की आवाज में एक अजीब सी मिठास, खनक, दिलकश दिलकशी, नजाकत, एक जादू भरी नशा थी| उनकी गानोंकी, आवाज की वो जादू, वो नशा सुननेवालों को अलग ही दुनिया में ले जाती है| अजी ओ सुनो तो, रात मोहे मीठा मीठा सपना, हमको छोड़ के कहा जाओगे, जैसे गीत उन्होंने कुछ और ही अंदाज़ से गाये, वही दूसरी तरफ मेरा सुंदर सपना, याद करोगे, जैसे दुखी गीत, दर्शन प्यासी आई दासी, तोरा मनवा क्यों घबराये जैसे भक्ति गीत, हेरी मैं तो प्रेम दीवानी-जोगन, चले आओ चले आओ जैसे बिरह गीत, देखो जादू भरे मोरे नैन, जैसे शास्त्रीय गीत, कैसे कोई जीये, वक़्त ने किया, आज की काली घटा जैसे आर्त गीत, मानजात नात दुवा जैसे तात्विक गीत, आई रे घिर घिर, न ये चाँद होगा जैसे भावुक गीत भी गाये| उनकी आवाज में हर एक रंग का हर एक ढंग का गाना खुल गया, प्रेम गीतों में प्रेम की भावना, दुखी गीतों में दुःख की भावना, भक्ति गीतों में भक्ति की भावना, सुननेवाले जरुर महेसुस करते है|

किशोर, हेमंत, तलत साहब के साथ उन्होंने कई कर्णमधुर द्वंद्व गीत गाए, लेकिन रफ़ी साहब के साथ गाये गीतों में कुछ और ही जादू था| रफ़ीसाहब की कमाल की मधुर आवाज,और गीता जी की एक दिलकश आवाज जब भी मिलती गयी, तब आखों ही आखों में इशारा, सुन सुन सुन सुन जालिमा, उधर तुम हसीं हो, चल दिए बन्दा नवाज़, रिमझिम के तराने, तुम जो हुवे मेरे हमसफ़र, यहाँ हम वहा तुम, जैसे बेमिसाल गीत बनते गए|गीता जी ने १९४७ से १९६२ तक लता जी के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय गायिका बनकर तमाम संगीत रसिकों के दिलों पर राज किया|
उनकी नशीली आवाजमें वो जादू थी, के आशा जी ने भी उनकी गायकी की शैली को अपने शुरुवाती दौर मै कॉपी किया, आशा जी की आवाज पर गीता जी की नशीली आवाज का प्रभाव है इसमें कोई शक नहीं|

साहिब बीवी और गुलाम(१९६२) के बाद गुरु दत्त बैनर जैसे ही दत्त साहब की चले जाने से बंद हुवा, और एक वर्सेटाइल, कामयाब,लोकप्रिय गायिका होनेके बावजूद गीता जी का करिअर डूबता चला गया, १९६६ मै प्रदर्शित हुवी फिल्म ‘बहारें फिर भी आएँगी’ मै उनका कोई गीत नहीं था| तनाव भरी जिंदगी का असर उनके करिअर पर हो रहा था, जमाना भी बदल गया था, नय्यर साहब ने आशा जी को साथ दिया| बर्मन दा और लता जी का भी समेट हुवा था तब तक| गीताजी की आवाज का बखूबी इस्तेमाल करनेवाले संगीतकार उन्हें फिर ना मिले, वैसी फिल्मे ना मिली| बाद में उन्होंने स्टेज पर कार्यक्रम किये, चंद बंगाली फिल्मों मै भी काम किया, और अम्बा बाई का जोगवा, जय मार्तंड जय मल्हार, मुक्या मनाचे बोल, जा सांग लक्ष्मणा जैसे मराठी गीत भी गाये| हिंदी गीतों की बात की जाए तो १९६६ में कनु रॉय ने उनसे आज की काली घटा, १९६७ में रत्नदीप हेमराज जी ने लट उलझी है, जैसे लाजवाब गीत गवाए, लेकिन उन्हें फिर से वो स्थान न मिल सका|


फ़िल्मी दुनिया में कोई एक बार गिरा तो गिरता ही जाता है, और इन्हें कोई नहीं पूछता, ना काम देखनेवाले, ना काम देनेवाले! फिल्म लाइन की यही रित है|(कागज़ के फूल-१९५९) ये अल्फाज़ गीता जी के बारे में बिलकुल सही साबित हुवे|१९७१ में आई फिल्म अनुभवमें फिर एक बार कनु रॉय ने उनसे मेरी जां मुझे जा न कहो, कोई चुपके से आके, मेरा दिल जो मेरा होता,जैसे लाजवाब गीत गवाए| अनुभव फ्लॉप हुवी लेकिन ये तीनो गीत आज तक याद किये जाते है|

जिसका मैं बार बार जिक्र कर रहा हूँ, वो जादू, वो अजीब सा नशा उनकी आवाज में उनके अंत तक मौजूद थी | वक़्त ने किया में जो आर्त भाव या फिर चले आओ में जो बिरह की भावना थी वोही भावना कोई चुपके से आके में मौजूद है| न जाओ सैया में जो भाव है वोही मेरी जां मुझे जा न कहो में मौजूद है|

अनुभव प्रदार्शित होने के बाद गीता जी के किस्मत की ज्योत जल कर जरुर उनकी तकदीर रौशन हुवी, उनके चाहनेवाले चाहते जरुर खुश हो गए लेकिन वो रौशनी बुझते दिए की आखरी रौशनी ही साबित हुवी, और गीता जी महेज ४२ साल की उम्र में आज ही के दिन १९७२में लिव्हर सिरोयसिस की वजह से चल बसी| एक नशीली आवाज, एक वर्सेटाइल आवाज हमेशा के लिए खामोश हुवी|

आभार : इस विशेष लेख के लिए हम हमारे प्रिय मित्र श्री स्वप्निल सहस्त्रबुद्धे जी के अत्यंत आभारी हैं.