Posts Tagged ‘Geeta Dutt’

मेरा दिल जो मेरा होता….गीता जी की आवाज़ और गुलज़ार के शब्द, जैसे कविता में घुल जाए अमृत

Friday, December 4th, 2009

Tanuja

गीता दत्त जी के गाए गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस ख़ास लघु शृंखला ‘गीतांजली’ की अंतिम कड़ी पर। गीता दत्त डोट कोम के सहयोग से इस पूरे शृंखला में आप ने ना केवल गीता जी के गाए अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए हुए गीत सुनें, बल्कि उन अभिनेत्रियों और उन गीतों से संबंधित तमाम जानकारियों से भी अवगत हो सके। अब तक प्रसारित सभी गीत ५० के दशक के थे, लेकिन आज इस शृंखला का समापन हो रहा है ७० के दशक के उस फ़िल्म के गीत से जिसमें गीता जी की आवाज़ आख़िरी बार सुनाई दी थी। यह गीत है १९७१ की फ़िल्म ‘अनुभव’ का, “मेरा दिल जो मेरा होता”। और यह गीत फ़िल्माया गया था तनुजा पर। इस फ़िल्म के गीतों पर और चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आइए कुछ बातें तनुजा जी की हो जाए! तनुजा का जन्म बम्बई के एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक कवि थे और माँ शोभना समर्थ ३० और ४० के दशकों की एक मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री। जहाँ शोभना जी ने अपनी बेटी नूतन को लौंच किया १९५० की फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ में, ठीक वैसे ही उन्होने अपनी छोटी बेटी तनुजा को बतौर बाल कलाकार कास्ट किया था उसी फ़िल्म में। उसके बाद तनुजा को पढ़ाई लिखाई के लिए विदेश भेजा गया जहाँ पर उन्होने अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और जर्मन भाषाओं की तालीम प्राप्त की। वापस आकर १९६० की फ़िल्म ‘छबिली’ में अपनी बड़ी बहन नूतन के साथ उन्होने अभिनय किया, जिसका निर्देशन उनकी माँ ने ही किया था। इस फ़िल्म में गीता दत्त ने नूतन के साथ अपना एक्लौता डुएट गाया था। इसके एक दशक बाद बासु भट्टाचार्य की फ़िल्म ‘अनुभव’ में तनुजा का किरदार बहुत सराहा गया। तनुजा ने इस फ़िल्म की शूटिंग् के लिए अपना अपार्टमेंट बासु दा को दे रखा था, जिसके बदले बासु दा ने उन्हे दी एक यादगार भूमिका।

‘अनुभव’ फ़िल्म के गीतों की अगर बात करें तो वह एक ऐसा दौर था जब गीता दत्त बीमार हो चुकीं थीं। उनके पति गुरु दत्त का स्वर्गवास हो चुका था और उन पर अपने तीन छोटे छोटे बच्चों को बड़ा करने और ‘गुरु दत्त फ़िल्म्स’ के कर्ज़ों को चुकाने की ज़िम्मीदारी आन पड़ी थी। ऐसी स्थिति में फ़िल्म ‘अनुभव’ उनके जीवन में एक रोशनी की तरह आई और फिर बार फिर उन्होने यह साबित किया कि अब भी उनकी आवाज़ में वही अनूठा अंदाज़ बरक़रार है जो ५० और ६० के दशकों में हुआ करती थी। ‘अनुभव’ के गानें बेहद लोकप्रिय हुए और आज जब भी गीता जी के गाए गीतों की कोई सी.डी रिलीज़ होती है तो इस फ़िल्म का एक गीत उसमें ज़रूर शामिल किया जाता है।

गीता दत्त के गाए ‘अनुभव’ फ़िल्म के तीनों गानें अपने आप में मास्टरपीस हैं और इन गीतों की चर्चा घंटों तक की जा सकती है। हमें याद रखनी चाहिए कि उस समय बाक़ी सभी संगीतकार उनसे मुँह मोड़ चुके थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि गीता जी ने इन गीतों में जान डाल दी थी और वह भी उस समय जब कि उनकी अपनी तबीयत बहुत ख़राब थी और ख़ुद अपनी ज़िंदगी की तमाम परेशानियों से झूझ रही थीं। किसी तरह का नाटकीय या बहुत ज़्यादा जज़्बाती ना होते हुए भी उन्होने इन गीतों में वो अहसासात भरे हैं कि तनुजा के किरदार के साथ पूरा पूरा न्याय हुआ है। “मुझे जाँ ना कहो मेरी जाँ” गीत के अंत में उनकी हँसी कितनी नैचरल लगती है, है न? इस फ़िल्म में संगीत था कमचर्चित संगीतकार कानु रॉय का, जिनके संगीत निर्देशन में गीता जी की ही आवाज़ में फ़िल्म ‘उसकी कहानी’ का गीत “आज की काली घटा” हमने आपको गीता जी की पुण्य तिथि २० जुलाई को सुनवाया था।

दुर्भाग्यवश ‘अनुभव’ की कामयाबी उस दीपक की तरह थी जो बुझने से पहले दमक उठती है। गीता जी जल्द ही इस दुनिया-ए-फ़ानी को छोड़ कर चली गईं अपनी अनंत यात्रा पर, और पीछे छोड़ गईं वो असंख्य मीठी सुरीली यादें जिनके सहारे आज हम कभी थिरक उठते हैं, कभी मचल जाते हैं, कभी उनकी रोमांटिक कॉमेडी हमें गुदगुदा जाती हैं, तो कभी उनके भक्ति रस वाले गीतों में डूब कर हम ईश्वर को अपने ही अंदर महसूस करने लगते हैं, और कभी उनके दुख भरे गीतों को सुनते हुए दर्द से दिल भर उठता है यह सोचते हुए कि क्यों इस महान और बेमिसाल गायिका को इतने दुख ज़िंदगी ने दिए! दोस्तों, गीता जी पर केन्द्रित यह शृंखला समाप्त करते हुए आइए सुनते हैं ‘अनुभव’ फ़िल्म का यह गीत, और चलते चलते एक बार फिर से हम आभार व्यक्त करते हैं पराग सांकला जी का इस पूरे शृंखला के लिए गानें और तथ्य संग्रहित करने के लिए। इस शृंखला के बारे में आप अपने विचार हमें टिप्पणी के अलावा hindyugm@gmail.com की ई-मेल पते पर भी भेज सकते हैं। धन्यवाद!

गीत के बोल हैं:

मेरा दिल जो मेरा होता
पलकों पे पकड़ लेती
होंठों पे उठा लेती
हाथों मे. खुदा होता
मेरा दिल …

सूरज को मसल के मैं
चन्दन के तरह मलती
सोने का बदन ले कर
कुन्दन की तरह जलती
इस गोरे से चेहरे पर
आइना फ़िदा होता
मेरा दिल …

बरसा है कहीं पर तो
आकाश समुन्दर में
इक बूँद है चन्दा की
उतरे न समुन्दर में
दो हाथों के ओख में ये
गिर पड़ता तो क्या होता
हाथों में खुदा होता
मेरा दिल …

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http://podcast.hindyugm.com/2009/12/blog-post_04.html

हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

मुझको तुम जो मिले ये जहान मिल गया…जिस अभिनेत्री को मिली गीता की सुरीली आवाज़, वो यही गाती नज़र आई

Thursday, December 3rd, 2009

Mala Sinha

“गीतांजली” की नौवी कड़ी में आज गीता दत्त की आवाज़ सजने वाली है माला सिंहा पर। दोस्तों, हमने इस महफ़िल में माला सिंहा पर फ़िल्माए कई गीत सुनवा चुके हैं लेकिन कभी भी हमने उनकी चर्चा नहीं की। तो आज हो जाए? माला सिंहा का जन्म एक नेपाली इसाई परिवार में हुआ था। उनका नाम रखा गया आल्डा। लेकिन स्कूल में उनके सहपाठी उन्हे डाल्डा कहकर छेड़ने की वजह से उन्होने अपना नाम बदल कर माला रख लिया। कलकत्ते में कुछ बंगला फ़िल्मों में अभिनय करने के बाद माला सिंहा को किसी बंगला फ़िल्म की शूटिंग् के लिए बम्बई जाना पड़ा। वहाँ उनकी मुलाक़ात हुई थी गीता दत्त से। गीता दत्त को माला सिंहा बहुत पसंद आई और उन्होने उनकी किदार शर्मा से मुलाक़ात करवा दी। और शर्मा जी ने ही माला सिंहा को बतौर नायिका अपनी फ़िल्म ‘रंगीन रातें’ में कास्ट कर दी। लेकिन माला की पहली हिंदी फ़िल्म थी ‘बादशाह’ जिसमें उनके नायक थे प्रदीप कुमार। उसके बाद आई पौराणिक धार्मिक फ़िल्म ‘एकादशी’। दोनों ही फ़िल्में फ़्लॊप रही और उसके बाद किशोर साहू की फ़िल्म ‘हैमलेट’ ने माला को दिलाई ख्याति, भले ही फ़िल्म पिट गई थी। १९५७ में गुरु दत्त ने माला को अपनी महत्वाकांक्षी फ़िल्म ‘प्यासा’ में एक महत्वपूर्ण किरदार निभाने का मौका दिया जिसे वो पहले मधुबाला को देना चाहते थे। माला ने उस किरदार में जान डाल दी। यह फ़िल्म ना केवल हिंदी सिनेमा की एक क्लासिक फ़िल्म है, बल्कि यह फ़िल्म माला सिंहा के करीयर की एक टर्निंग् पॊयन्ट भी सिद्ध हुई। इसके बाद माला सिंहा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। धूल का फूल, परवरिश, फिर सुबह होगी, मैं नशे में हूँ, लव मैरिज, बहूरानी, अनपढ़, आसरा, दिल तेरा दीवाना, गुमराह, आँखें, हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में, जैसी सुपर डुपर हिट फ़िल्में माला की झोली में गई।

दोस्तों, गीता दत्त ने माला सिंहा के लिए जिन फ़िल्मों में पार्श्वगायन किया, वो फ़िल्में हैं – सुहागन (‘५४), रियासत (‘५५), फ़ैशन, प्यासा (‘५७), जालसाज़, चंदन, डिटेक्टिव (‘५८), आँख मिचोली (‘६२), और सुहागन (‘६४)। १९५७ की बंगला फ़िल्म ‘प्रिथिबी आमारे चाय’ में भी गीता जी ने माला जी का प्लेबैक किया था। आज हम जिस गीत को चुन लाए हैं वह एक बहुत ही ख़ूबसूरत युगल गीत है जिसमें गीता दत्त का साथ दिया है हेमन्त कुमार ने। फ़िल्म ‘डिटेक्टिव’ का यह गीत है जिसमें संगीत दिया था गीता दत्त के भाई मुकुल रॉय ने। गीत फ़िल्माया गया माला सिंहा और प्रदीप कुमार पर। ये मीठे सुरीले बोल हैं शैलेन्द्र के। इस फ़िल्म का निर्देशन किया था शक्ति सामंत ने। वाल्ट्ज़ के रीदम पर आधारित यह युगलगीत रूमानीयत के रस में डूबो डूबो कर रची गई है। मुकुल रॉय को बहुत ज़्यादा काम करने का मौका नहीं मिला। उनके संगीत निर्देशन में बस ४ फ़िल्में आईं – डिटेक्टिव, सैलाब, भेद, दो बहादुर। फ़िल्म ‘डिटेक्टिव’ में गीता जी का ही गाया एक और मशहूर गीत था “दो चमकती आँखों में कल ख़्वाब सुनहरा था जितना, हाए ज़िंदगी तेरी राह में आज अंधेरा है उतना”। क़िस्मत की विडंबना देखिए, जहाँ एक तरफ़ इस गीत को बेहद लोकप्रियता हासिल हुई, वहीं ऐसा लगा जैसे इस गीत के बोल हू-ब-हू मुकुल रॉय के लिए ही लिखे गए हों। प्रतिभा होते हुए भी वो आगे नहीं बढ़ सके। आज का यह अंक गीता जी के साथ साथ समर्पित है मुकुल रॊय की प्रतिभा को भी। सुनते हैं यह गीत.

यह हैं बोल:

हेमंत: मुझ को तुम जो मिले ये जहान मिल गया
गीता: तुम जो मेरे दिल में हँसे दिल का कमल देखो खिल गया

हेमंत: आ ऽ ये भीगती हुई फ़िज़ा, बरस रही है चाँदनी
गीता: तारों ने मिल के छेड़ दी मधुर मिलन की रागिनी
हेमंत: लेके क़रार आया है प्यार, क्या है अगर मेरा दिल गया
दोनों: मुझ को तुम जो मिले ये जहान मिल गया

गीता: आ ऽ देखते चल रहे हैं हम है प्यार का ये रास्ता
हेमंत: चाँद और सितारों का, बहार का ये रास्ता
गीता: लेके क़रार आया है प्यार, क्या है अगर मेरा दिल गया
दोनों: मुझ को तुम जो मिले ये जहान मिल गया

हेमंत: आ ऽ मेरे सुहाने ख़्वाब, कि तुम मेरे सामने रहो
गीता: ऐसी हसीन रात है दिल ये कहे सहर न हो
हेमंत: लेके क़रार आया है प्यार, क्या है अगर मेरा दिल गया
दोनों: मुझ को तुम जो मिले ये जहान मिल गया
तुम जो मेरे दिल में हँसे दिल का कमल देखो खिल गया

Source :

http://podcast.hindyugm.com/2009/12/blog-post_03.html

हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

चंदा चांदनी में जब चमके…गीता दत्त और गीता बाली का अनूठा संगम

Thursday, December 3rd, 2009

Geeta Bali

हमारे चुने हुए गीता दत्त के गाए गानें इन दिनों आप सुन रहे हैं ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ की ख़ास लघु शृंखला ‘गीतांजली’ के अन्तर्गत। आज के अंक में गीता दत्त गा रहीं हैं गीता बाली के लिए। जी हाँ, वही गीता बाली जिनकी थिरकती हुई आँखें, जिनके चेहरे के अनगिनत भाव, जिनकी नैचरल अदाकारी के चर्चे आज भी लोग करते हैं। और इन सब से परे यह कि वो एक बहुत अच्छी इंसान थीं। गीता बाली का जन्म अविभाजित पंजाब में एक सिख परिवार में हुआ था। उनका असली नाम था हरकीर्तन कौर। देश के बँटवारे के बाद परिवार बम्बई चली आई और गरीबी ने उन्हे घेर लिया। तभी हरकीर्तन कौर बन गईं गीता बाली और अपने परिवार को आर्थिक संकट से उबारा एक के बाद एक फ़िल्म में अभिनय कर। बम्बई आने से पहले उन्होने पंजाब की कुछ फ़िल्मों में नृत्यांगना के छोटे मोटे रोल किए हुए थे। कहा जाता है कि जब किदार शर्मा, जिन्होने गीता बाली को पहला ब्रेक दिया, पहली बार जब वो उनसे मिले तो वो अपने परिवार के साथ किसी के बाथरूम में रहा करती थीं। किदार शर्मा ने पहली बार गीता बाली को मौका दिया १९४८ की फ़िल्म ‘सुहाग रात’ में। और इसी फ़िल्म से शुरु हुआ गीता बाली और गीता रॉय का साथ। गीता बाली और गीता दत्त, दोनों ने ही यह साबित किया कि दर्दीले और चुलबुले, दोनों तरह के किरदार और गीत गानें में वो अपनी अपनी जगह पारंगत हैं। १९५१ में गुरु दत्त की पहली हिट फ़िल्म ‘बाज़ी’ से गीता बाली एक नामचीन अदाकारा बन गईं। देव आनंद ने इस फ़िल्म के बारे में कहा था कि “People came repeatedly to theatres to see Geeta’s spirited dancing to “tadbeer se bigdi hui taqdeer bana de”. This cemented the bonding between Geeta Bali and Geeta Roy!” शम्मी कपूर गीता बाली की ज़िंदगी में आए जब वे दोनों ‘मिस कोका कोला’ और ‘कॊफ़ी हाउस’ जैसी फ़िल्मों में साथ साथ काम कर रहे थे। दोनों ने आगे चलकर शादी कर ली, लेकिन बहुत जल्द गीता बाली इस दुनिया से गुज़र गईं। उस वक़्त शम्मी कपूर ‘तीसरी मंज़िल’ फ़िल्म में काम कर रहे थे।

गीता बाली की थोड़ी चर्चा हमने की, और अब बारी है आज के गाने की। गीता दत्त की आवाज़ में पेश है गीता बाली पर फ़िल्माया फ़िल्म ‘मुजरिम’ का गीत “चंदा चांदनी में जब चमके”। वैसे आपको बता दें कि इस फ़िल्म में शम्मी कपूर की नायिका थीं रागिनी; गीता बाली तो बस होटल डान्सर की भूमिका में केवल इसी आइटम सॊंग् में नज़र आईं। इस गीत में गीता बाली को बर्मीज़ लुक्स दिए गए, जिस तरह से हेलेन दिखती थीं। बहुत ही खुशमिजाज़ गीत है और एक बार फिर से ओ. पी. नय्यर साहब की धुन, लेकिन इस बार गीतकार हैं मजरूह सुल्तानपुरी। इस गीत का शुरुआती संगीत काफ़ी हद तक हमें याद दिलाती है “मेरा नाम चिन चिन चू” के शुरुआती संगीत का। तो दोस्तों, आइए गीत को सुना जाए, पिछले दो गीतों की तरह आज भी बारी है झूमने की। गीता दत्त की आवाज़ में इस तरह के गानें इतने अच्छे लगते हैं कि सच में दिल झूम उठता है। ५० के दशक में नय्यर साहब ने बहुत से इस तरह के गानें गीता दत्त से गवाए हैं, जिनमें से बहुत से गानें आज कहीं से बिल्कुल सुनाई नहीं देते हैं। और आज का गीत उन्ही में से एक है। लेकिन पराग जी के प्रयास का नतीजा है कि आज हम इस गीत को एक बार फिर से जी रहे हैं। आइए सुनते हैं।

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http://podcast.hindyugm.com/2009/12/blog-post_02.html

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किया यह क्या तूने इशारा जी अभी अभी…गीत दत्त के स्वरों में हेलन ने बिखेरा था अपना मदमस्त अंदाज़

Tuesday, December 1st, 2009

Helen Geeta

इन दिनों ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर जारी है गीता दत्त के गाए हुए गीतों की ख़ास लघु शृंखला ‘गीतांजली’, जिसके अन्तर्गत दस ऐसे गानें बजाए जा रहे हैं जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। आज जिस अभिनेत्री को हमने चुना है वो नायिका के रूप में भले ही कुछ ही फ़िल्मों में नज़र आईं हों, लेकिन उन्हे सब से ज़्यादा ख्याति मिली खलनायिका के किरदारों के लिए। सही सोचा आपने, हम हेलेन की ही बात कर रहे हैं। वैसे हेलेन पर ज़्यादातर मशहूर गानें आशा भोसले ने गाए हैं, लेकिन ५० के दशक में गीता दत्त ने हेलेन के लिए बहुत से गानें गाए। आज हमने जिस गीत को चुना है वह है १९५७ की फ़िल्म ‘दुनिया रंग रंगीली’ से “किया यह क्या तूने इशारा जी अभी अभी, कि मेरा दिल तुझे पुकारा अरे अभी अभी”। राजेन्द्र कुमार, श्यामा, जॉनी वाकर, चाँद उस्मानी, जीवन व हेलेन अभिनीत इस फ़िल्म के गानें लिखे जान निसार अख़्तर ने और संगीत था ओ. पी. नय्यर साहब का। ‘आर पार’ की सफलता के बाद गीता दत्त को ही श्यामा के पार्श्वगायन के लिए चुना गया। इस फ़िल्म में श्यामा के नायक थे जॉनी वाकर और इस जोड़ी पर कई गानें भी फ़िल्माए गए जिनमें स्वर आशा भोसले का था। आशा जी ने इस फ़िल्म की मुख्य नायिका चाँद उस्मानी का भी पार्श्वगायन किया। ५० के दशक के शुरुआती सालों में नय्यर साहब गीता दत्त से बहुत सारे गानें गवाए थे, लेकिन जैसे जैसे यह दशक समापन की ओर बढ़ता गया, आशा भोसले बनती गईं नय्यर साहब की प्रधान गायिका। १९५८ की फ़िल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ में नय्यर साहब ने गीता जी से केवल दो गीत गवाए जो हेलेन पर फ़िल्माए गए। इनमें से एक था “मेरा नाम चिन चिन चू” जिसने गीता दत्त और हेलेन, दोनों को लोकप्रियता की बुलंदी पर बिठाया।

वापस आते हैं आज के गीत पर। आज का यह गीत कहीं खो ही गया था, लेकिन १९९२ में एच. एम. वी (अब आर. पी. जी) ने “Geeta Dutt sings for OP Nayyar” नामक कैसेट में इस गीत को शामिल किया और इस तरह से यह गीत एक बार फिर से गीता दत्त और नय्यर साहब के चाहनेवालों के हाथ लग गई। यह गीत एक साधारण गीत होते हुए भी बहुत असरदार है जो एक चुलबुली हवा के झोंके की तरह आती है और गुदगुदाकर चली जाती है। गीता जी का ख़ास अंदाज़ इस तरह के गीतों में चार चाँद लगा देती थी। एक तरफ़ गीता जी का नशीला अंदाज़ और दूसरी तरफ़ हेलेन जॉनी वाकर को इस गीत में शराब पिलाकर फाँसने की कोशिश कर रही है। भले ही इस गीत के ज़रिए हेलेन जॉनी वाकर को बहकाने की कोशिश कर रही है लेकिन ना तो गीता जी की गायकी में कोई अश्लीलता सुनाई देती है और ना ही हेलेन के अंदाज़ और अभिनय में। इस गीत में हेलेन के डांस स्टेप्स हमें याद दिलाती हैं फ़िल्म ‘अलबेला’ में सी. रामचंद्र के धुनों पर थिरकते हुए गीता बाली और भगवान की। नय्यर साहब का संगीत संयोजन हर गीत में कमाल का रहा है। इस गीत के इंटर्ल्युड म्युज़िक में भी उनका हस्ताक्षर साफ़ सुनाई देता है। तो आइए सुनते हैं फ़िल्म ‘दुनिया रंग रंगीली’ का गीत। इस फ़िल्म का नाम याद आते ही पंकज मल्लिक की आवाज़ में “दुनिया रंग रंगीली बाबा” जैसे दिल में बज उठती है। यह गीत भी भविष्य में सुनेंगे, लेकिन आज बहक जाइए गीता दत्त और हेलेन के नशीले अंदाज़ में।

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http://podcast.hindyugm.com/2009/12/blog-post.html

हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

जब बादल लहराया…झूम झूम के गाया…अभिनेत्री श्यामा के लिए गीता दत्त ने

Monday, November 30th, 2009

Shyama

जिस तरह से गीता दत्त और हेलेन की जोड़ी को अमरत्व प्रदान करने में बस एक सुपरहिट गीत “मेरा नाम चिन चिन चू” ही काफ़ी था, जिसकी धुन बनाई थी रीदम किंग् ओ. पी. नय्यर साहब ने, ठीक वैसे ही गीता जी के साथ अभिनेत्री श्यामा का नाम भी ‘आर पार’ के गीतों और एक और सदाबहार गीत “ऐ दिल मुझे बता दे” के साथ जुड़ा जा सकता है। जी हाँ, आज ‘गीतांजली’ में ज़िक्र गीता दत्त और श्यामा का। श्यामा ने अपना करीयर शुरु किया श्यामा ज़ुत्शी के नाम से जब कि उनका असली नाम था बेबी ख़ुर्शीद। ‘आर पार’ में अपार कामयाबी हासिल करने से पहले श्यामा को एक लम्बा संघर्ष करना पड़ा था। उन्होने अपना सफ़र १९४८ में फ़िल्म ‘जल्सा’ से शुरु किया था। वो बहुत सारी कामयाब फ़िल्मों में सह-अभिनेत्री के किरदारों में नज़र आईं जैसे कि ‘शायर’ में सुरैय्या के साथ, ‘शबनम’ में कामिनी कौशल के साथ, ‘नाच’ में फिर एक बार सुरैय्या के साथ, ‘जान पहचान’ में नरगिस के साथ और ‘तराना’ में मधुबाला के साथ। अनुमान लगाया जाता है कि गीता रॉय की आवाज़ में श्यामा पर फ़िल्माया हुआ पहला गीत १९४९ की फ़िल्म ‘दिल्लगी’ का होना चाहिए, जिसके बोल थे “तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी”। अब आप यह कह उठेंगे कि यह तो सुरैय्या और श्याम ने गाया था! जी हाँ, लेकिन फ़िल्म में इस गीत का एक मिनट का एक वर्ज़न भी था जिसे गीता रॉय ने गाया था और जो श्यामा पर फ़िल्माया गया था। लेकिन बदक़िस्मती से यह वर्ज़न ग्रामोफ़ोन रिकार्ड पर जारी नहीं किया गया। इस तरह से गीता रॉय का गाया श्यामा पर फ़िल्माया हुआ पहले रिलीज़्ड गीत थे फ़िल्म ‘आसमान’ और ‘श्रीमतीजी’ में जो बनी थीं १९५२ में ओ. पी. नय्यर के संगीत निर्देशन में।

और इसके बाद बहुत जल्द ही गीता दत्त ने श्यामा पर एक ऐसा गीत गाया जो आज एक कालजयी गीत बन कर रह गया है। याद है ना आपको “ना ये चाँद होगा ना तारे रहेंगे”, फ़िल्म ‘शर्त’ में? इस गीत को तो हम ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर भी सुनवा चुके हैं। और इसी साल, यानी कि १९५४ में आई फ़िल्म ‘आर पार’ जिसने पुराने सारे रिकार्ड्स तोड़ दिए। मुन्नी कबीर ने अपनी किताब “Guru Dutt : A Life in Cinema” में लिखा है – “Geeta Bali was first considered for the role of Nikki, but when she pulled out of the film, Geeta Dutt suggested that Shyama take the part.” युं तो ‘आर पार’ के सारे गानें सुपरहिट हैं, लेकिन श्यामा पर जो तीन गानें फ़िल्माए गये वो हैं “जा जा जा जा बेवफ़ा”, “सुन सुन सुन सुन ज़ालिमा” और “ये लो मैं हारी पिया”। आगे चलकर नय्यर साहब ने और भी कई गानें श्यामा के लिए बनाए जिन्हे गाया गीता दत्त ने ही। १९५५ में ‘मुसाफ़िरख़ाना’, १९५६ में ‘मक्खीचूस’, ‘छूमंतर’ और ‘भाई भाई’ तथा १९५७ में ‘माई बाप’ जैसी फ़िल्मों में गीता दत्त ने श्यामा का पार्श्वगायन किया। मदन मोहन के संगीत निर्देशन में गीता जी ने जो अपना सब से लोकप्रिय गीत गाया था फ़िल्म ‘भाई भाई’ में, वह श्यामा पर ही फ़िल्माया गया था। हमने उपर जितने भी फ़िल्मों का ज़िक्र किया, उनके अलावा गीता जी ने और जिन जिन फ़िल्मों में श्यामा का प्लेबैक किया उनके नाम हैं – निशाना (‘५०), सावधान (‘५४), जॊनी वाकर (‘५७), हिल स्टेशन (‘५७), बंदी (‘५७), पंचायत (‘५८), चंदन (‘५८), दुनिया झुकती है (‘६०), अपना घर (‘६०) तथा ज़बक (‘६१)। लेकिन आज हम गीता-श्यामा की जोड़ी के नाम जिस गीत को कर रहे हैं वह है १९५६ की फ़िल्म ‘छू मंतर’ का, जिसे नय्यर साहब की धुन पर जान निसार अख़्तर ने लिखा था। सुनते हैं “जब बादल लहराया, जिया झूम झूम के गाया”। तो आप भी सुनिए और झूम जाइए।

Source :

http://podcast.hindyugm.com/2009/11/blog-post_30.html

हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

धड़कने लगा दिल नज़र झुक गयी….नूतन की अदाकारी और गीता दत्त से स्वर, दुर्लभ संयोग

Friday, November 27th, 2009

Nutan

ल्ड इज़ गोल्ड’ पर इन दिनों आप सुन रहे हैं पार्श्वगायिका गीता दत्त के गाए हुए कुछ सुरीले सुमधुर गीत जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। इन गीतों को चुनकर और इनके बारे में तमाम जानकारियाँ इकट्ठा कर हमें भेजा है गीता दत्त डोट कौम की टीम ने और उन्ही की कोशिश का यह नतीजा है कि गुज़रे ज़माने के ये अनमोल नग़में आप तक इस रूप में पहुँच रहे हैं।

नरगिस, मीना कुमारी, कल्पना कार्तिक और मधुबाला के बाद आज बारी है अदाकारा नूतन की। नूतन भी हिंदी फ़िल्म जगत की एक नामचीन अदाकारा रहीं हैं जिनके अभिनय का लोहा हर किसी ने माना है। हल्के फुल्के फ़िल्में हों या फिर संजीदे और भावुक फ़िल्में, हर फ़िल्म में वो अपनी अमिट छाप छोड़ जाती थीं। उनके अभिनय से सजी तमाम फ़िल्में आज क्लासिक फ़िल्मों में जगह बना चुकी है। वो एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होने ५ बार फ़िल्मफ़ेयर के तहत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। नूतन मधुबाला, नरगिस या मीना कुमरी की तरह बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत या ग्लैमरस नहीं थीं, लेकिन उनकी सादगी के ही लोग दीवाने थे। उनकी ख़ूबसूरती उनके अंदर थी जो उनके स्वभाव और अभिनय में फूट पड़ती।

नूतन अभिनेत्री शोभना समर्थ की ज्येष्ठ पुत्री थीं। उन्हे अपना पहला बड़ा ब्रेक मिला था १९५५ की फ़िल्म ‘सीमा’ में, जिसके लिए उन्हे फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला था। उसके तुरंत बाद देव आनंद के साथ ‘पेयिंग् गेस्ट’ जैसी हास्य फ़िल्म करके सब को हैरान कर दिया उन्होने। १९५९ में राज कपूर की फ़िल्म ‘अनाड़ी’ और बिमल रॉय की फ़िल्म ‘सुजाता’ में उन्हे ख़ूब सराहना मिली। उनके अभिनय से सजी कुछ उल्लेखनीय फ़िल्मों के नाम हैं – सीमा, सुजाता, बंदिनी, दिल ही तो है, पेयिंग् गेस्ट, अनाड़ी, नाम, मेरी जंग, आदि। युं तो नूतन अच्छा गाती भी थीं, फ़िल्म ‘छबिली’ में उन्होने गीत भी गाए थे। लेकिन क्योंकि सिलसिला जारी है गीता दत्त के गाए गीत सुनने का, तो आज नूतन पर फ़िल्माया हुआ जो गीत हम चुनकर लाए हैं वह है फ़िल्म ‘हीर’ का।

१९५४ में बनीं फ़िल्म ‘हीर’ के मुख्य कलाकार थे प्रदीप कुमार और नूतन। यह फ़िल्मिस्तान की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था हमीद बट ने। फ़िल्म में संगीत था अनिल बिस्वास का, जिनके संगीत में इस साल किशोर कुमार व माला सिंहा अभिनीत फ़िल्म ‘पैसा ही पैसा’ भी प्रदर्शित हुई थी। ‘हीर’ उन अल्पसंख्यक फ़िल्मों में से एक है जिनमें नूतन नायिका हों और गीता जी ने गीत गाए हों। कहा जाता है कि गुरु दत्त नहीं चाहते थे कि गीता जी इस फ़िल्म में गाए क्योंकि उन्हे अनिल दा पसंद नहीं थे। लेकिन गीता जी की ज़िद के आगे उन्हे झुकना पड़ा और इस तरह से अनिल दा ने इस फ़िल्म में कुछ यादगार गीत रचे गीता जी के लिए। गीता दत्त इस फ़िल्म में कुल ३ एकल और एक हेमन्त कुमार के साथ युगल गीत गाये। आज सुनिए उनकी एकल आवाज़ में “धड़कने लगा दिल नज़र झुक गईं”।

युं तो गीता दत्त ने नूतन की चर्चित फ़िल्म ‘सुजाता’ में भी दो गीत गाये थे लेकिन उनमें से एक शशिकला पर (“बचपन के दिन भी क्या दिन थे”) और दूसरा सुलोचना पर (“नन्ही कली सोने चली हवा धीरे आना”) फ़िल्माया गया था। १९६० की फ़िल्म ‘मंज़िल’ में उन्होने नूतन के लिए “चुपके से मिले प्यासे प्यासे” गाया और ‘छबिली’ में उन्होने गाया “यारों किसी से ना कहना” नूतन के साथ। तो इन सब जानकारियों के बाद अब वक़्त हो चुका है आज का गीत सुनने का, तो सुनते हैं फ़िल्म ‘हीर’ का यह गीत जिसे लिखा है मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने।

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http://podcast.hindyugm.com/2009/11/dhadakane-laga-dil-nazar-jhuk-gayee.html

हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

दर्शन प्यासी आई दासी…मधुबाला की विनती को स्वर दिए गीता दत्त ने

Thursday, November 26th, 2009

Madhubala

गीतांजली में आज बारी है हिंदी फ़िल्म जगत की सब से ख़ूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माए गए गीता रॉय के गाए एक गीत की। गीत का ज़िक्र हम थोड़ी देर में करेंगे, पहले मधुबाला से जुड़ी कुछ बातें हो जाए! मधुबाला का असली नाम था मुमताज़ जहाँ बेग़म दहल्वी। उनका जन्म दिल्ली में एक रूढ़ी वादी पश्तून मुस्लिम परिवार में हुआ था। ११ बच्चों वाले परिवार की वो पाँचवीं औलाद थीं। अपने समकालीन नरगिस और मीना कुमारी की तरह वो भी हिंदी सिनेमा की एक बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में जानी गईं। अपने नाम की तरह ही उन्होने चारों तरफ़ अपनी की शहद घोली जिसकी मिठास आज की पीढ़ी के लोग भी चखते हैं। मधुबाला की पहली फ़िल्म थी ‘बसंत’ जो बनी थी सन् ‘४२ में। इस फ़िल्म में उन्होने नायिका मुमताज़ शांति की बेटी का किरदार निभाया था। उन्हे पहला बड़ा ब्रेक मिला किदार शर्मा की फ़िल्म ‘नीलकमल’ में जिसमें उनके नायक थे राज कपूर, जिनकी भी बतौर नायक वह पहली फ़िल्म थी। ‘नीलकमल’ आई थी सन् ‘४७ में और इसी फ़िल्म से मुमताज़ बन गईं मधुबाला। उस समय उनकी आयु केवल १४ वर्ष ही थी। इसी फ़िल्म में गायिका गीता रॉय ने राजकुमारी और मुकेश के साथ साथ कई गीत गाए लेकिन इनमें से गीता जी का गाया हुआ कोई भी गीत मधुबाला के होठों पर नहीं सजे। अपने परिवार की आर्थिक अवस्था को बेहतर बनाने के लिए मधुबाला ने पहले ४ सालों में लगभग २४ फ़िल्मो में अभिनय किया था। यह सिलसिला जारी रहा और बाद में उन्हे इस बात का अफ़सोस भी रहा कि मजबूरी में उन्हे बहुत सारी ऐसी फ़िल्में भी करनी पड़ी जो उन्हे नहीं करनी चाहिए थी। क्वांटिटी की ख़ातिर उन्हे क्वालिटी के साथ समझौता करना पड़ा था। आज गीता रॉय की आवाज़ में मधुबाला पर फ़िल्माया हुआ जो गीत हम आप तक पहुँचा रहे हैं वह है फ़िल्म ‘संगदिल’ का गीत “दर्शन प्यासी आई दासी जगमग दीप जलाए”।

भारतीय आदर्श नारी के किरदार में मधुबाला का अभिनय ‘संगदिल’ में सराहनीय था। ‘संगदिल’ Charlotte Bronte की क्लासिक Jane Eyre पर आधारित थी। कहानी कुछ इस तरह की थी कि बचपन के दो साथी बिछड़ जाते हैं और अलग अलग दुनिया में बड़े होते हैं। नायिका बनती है एक पुजारन और नायक जायदाद से बेदखल हुआ ठाकुर। क़िस्मत दोनों को फिर से पास लाती है। सब कुछ ठीक होने लगता है लेकिन क्या होता है जब नायिका को पता चलता है नायक के काले गहरे राज़, यही है इस फ़िल्म की कहानी। इस फ़िल्म का निर्देशन किया था राय चंद तलवार ने और संगीत दिया सज्जाद हुसैन साहब ने। इस फ़िल्म से तलत साहब का गाया “ये हवा ये रात ये चांदनी” आप इस महफ़िल में सुन चुके हैं।

गीता रॉय ने सज्जाद साहब के लिए १९४७ की फ़िल्म ‘मेरे भगवान’ में दो गीत और उसी साल ‘क़सम’ फ़िल्म में कुल ५ एकल गीत गाये। फ़िल्म ‘क़सम’ की रिलीज़ को लेकर थोड़ा सा संशय रहा है। १९५० की फ़िल्म ‘खेल’ में सज्जाद साहब ने गीता जी से गवाया था “साजन दिन बहुरे हमारे”। ‘संगदिल’ में आख़िरी बार गीता जी और सज्जाद साहब का साथ हुआ। इस फ़िल्म में आशा भोसले के साथ गीता रॊय ने गाया था “धरती से दूर गोरे बादलों के पार आजा, आजा बसा लें नया संसार”। लेकिन जो गीत सज्जाद साहब और गीता जी की सब से उत्कृष्ट कृति मानी जा सकती है, वह है इस फ़िल्म का आज का प्रस्तुत भजन “दर्शन प्यासी आई दासी जगमग दीप जलाए, प्रभु चरण की धूल मिले तो जीवन में सुख आए”। राजेन्द्र कृष्ण के लिखे इस भजन में एक अजीब सी कैफियत है, ऐसा लगता है कि जैसे बिल्कुल गिड़गिड़ाकर भगवान से दर्शन माँग रही है। बहुत ही सच्चा मालूम होता है भगवान से यह निवेदन, आइए सुनते हैं।

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आज की रात पिया दिल ना तोड़ो….अभिनेत्री कल्पना कार्तिक की पहली फिल्म में गाया था गीता दत्त ने इसे

Wednesday, November 25th, 2009

Kalpana Kartik

आज गीता जी की आवाज़ जिस अभिनेत्री पर सजने जा रही है वो हैं कल्पना कार्तिक। कल्पना कार्तिक का असली नाम था मोना सिंह, जो अपनी कॊलेज के दिनों में ‘मिस शिमला’ चुनी गईं थीं। अभिनेता देव आनंद से उनकी मुलाक़ात हुई और १९५४ में रूस में उन दोनों ने शादी कर ली। लेकिन ऐसा भी सुना जाता है कि उन दोनों की पहली मुलाक़ात फ़िल्म ‘बाज़ी’ के सेट पर हुई थी और ‘टैक्सी ड्राइवर’ के सेट पर शूटिंग् के दरमियान उन दोनों ने शादी की थी। लेकिन ऐसी कोई भी तस्वीर मौजूद नहीं है जो सच साबित कर सके। कल्पना कार्तिक ने अपनी फ़िल्मों में देव साहब के साथ ही काम किया। ५० के दशक में उनकी अभिनय से सजी कुल ५ फ़िल्में आईं। पहली फ़िल्म थी बाज़ी, जो बनी १९५१ में। बाक़ी चार फ़िल्मों के नाम हैं आंधियाँ (‘५२), टैक्सी ड्राइवर (‘५४), हाउस नंबर ४४ (‘५४), और नौ दो ग्यारह (‘५७)। दोस्तों, ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर आप ‘बाज़ी’, ‘टैक्सी ड्राइवर’ और ‘हाउस नंबर ४४’ के गीत सुन चुके हैं हाल ही में साहिर लुधियानवी व सचिन देव बर्मन पर केन्द्रित विशेष शृंखला के अंतर्गत। आज एक बार फिर से हम सुनेंगे फ़िल्म ‘बाज़ी’ से एक गीत। दरसल ‘बाज़ी’ में गीता जी के गाए एक से एक सुपरहिट गीत हैं जिनके बारे में हमने आपको साहिर-सचिनदा वाली शृंखला में ही बताया था। आज का गीत है “आज की रात पिया दिल ना तोड़ो, दिल की बात पिया मान लो”।

फ़िल्म ‘बाज़ी’ में जब गीता रॉय ने गीत गाए थे तब उनकी उम्र कुछ २०-२१ वर्ष की रही होगी। सचिन देव बर्मन ने गीता रॊय को ४० के आख़िर से लेकर ५० के दशक के बीचों बीच तक बहुत से ऐसे गानें गवाये जो कालजयी बन गए हैं। इसी फ़िल्म ‘बाज़ी’ के दौरान गीता रॉय और गुरु दत्त साहब में भी प्रेम हुआ और इन दोनों ने भी शादी कर ली। इस तरह से यह फ़िल्म आज गवाह है एक नहीं बल्कि दो दो प्रेम कहानियों की। फ़िल्म ‘बाज़ी’ में गुरु दत्त एक गेस्ट अपीयरन्स में भी नज़र आए थे। बर्मन दादा ने गीता जी से कुल ६ गीत गवाए थे इस फ़िल्म में जो एक दूसरे से बहुत अलग अंदाज़ वाले थे। इस फ़िल्म के बाक़ी गीत ज़्यादातर पाश्चात्य संगीत पर आधारित हैं लेकिन यह गीत पूरी तरह से इस धरती से जुड़ा हुआ है और बेहद मीठा व सुरीला है। यह फ़िल्म ना केवल कल्पना कार्तिक की पहली फ़िल्म थी, बल्कि इस फ़िल्म ने कई और कलाकारों के करीयर में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जैसे कि देव आनंद, गुरु दत्त, गीता रॉय, साहिर लुधियानवी और सचिन दा की भी। गीत सुनवाने से पहले इस गीत से जुड़ी एक और ख़ास बात। १९५३ में एक फ़िल्म आई थी ‘जीवन ज्योति’ जिसमें बर्मन दादा का संगीत था। इस फ़िल्म में उन्होने गीता रॉय और साथियों से एक पेपी नंबर गवाया था “देखो देखो नजर लग जाए ना, बैरन की नजर लग जाए ना”। इस गीत की एक उल्लेखनीय बात यह है कि इसकी इंटर्ल्युड की धुन “आज की रात पिया” की ही धुन है। कभी मौका मिला तो ज़रूर सुनिएगा। और अब वक़्त हो चला है आपको आज का गीत सुनवाने का। पेश-ए-ख़िदमत है कल्पना कार्तिक पर फ़िल्माया हुआ गीता रॉय की आवाज़ का जादू।

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हम “हिन्दयुग्म ” के “आवाज़” परिवार के आभारी है, जिन्हें हमें यह लेख यहापर प्रस्तुत करने की अनुमती दी. सजीव जी और सुजॉय जी का विशेष आभार.

Geeta Dutt: The Skylark

Wednesday, November 25th, 2009

Book

Geeta Dutt : The Skylark is a 231-page hardbound book, with 130 rare photographs, excerpts of love-letters written by husband Guru Dutt and transcripts of more than hundred songs, many of them are so rare that Haimanti had to scout for months on end to get hold of an audio.

Haimanti, a two-time national award winning filmmaker who was also Satyajit Ray’s first choice for the role of Bimala in Ghare Baire feels Geeta Dutt did not get her due when she was alive. With many hither-to-unknown revelations, the biography is a reflective, sensitive take on the singer’s personal life as well as an astute analysis of her career.

Her’s was a voice you could see, feel and experience. For it was a voice that danced, cried and allured with a versatility rarely seen in Hindi film music. And it is this extraordinary magic of the legendary singer that Pune-based film maker and author Haimanti Banerjee is striving to capture in the first ever biography being written on Geeta Dutt, who would have turned 79 on November 23rd this year.

Painstakingly gathering tidbits of information since the past five years to piece together her life story, Banerjee says the book is a tribute to the genius of Dutt, who never really got her due in life.
‘‘I want to establish that contrary to popular conception, Geeta Dutt’s career neither started nor ended with Guru Dutt. She was a much established singer when he was a struggling director in the late 40s and early 50s. No one director or composer made her — she was in a class of her own,’’ says Banerjee.

To this end Banerjee has spent considerable time studying and analysing Dutt’s singing career to make for a ‘‘compendium’’ that will have the complete lyrics of Dutt’s most important songs accompanied by their English translations. For instance, there are some five pages devoted to Tabdeer se bigri hui taqdeer bana de which marked Dutt’s transition from lachrymose numbers to peppy ones.

There is also an exploration of the kind of music directors, lyricists and actresses Dutt sang for and their relation with her, with some rare pictures obtained from her family members, especially son Arun Dutt. And though comments on her subject’s personal life have been studiously avoided, an analysis of the Guru Dutt-Geeta Dutt relationship finds a place in the book.

According to Banerjee, the greatest difficulty in doing research on Dutt has been the non-availability of the singer’s body of work. ‘‘Can you believe there was this one journal with a series of four volumes on Hindi film music and Geeta Dutt’s name came up only twice in it?’’ exclaims the writer who calls Harminder’s Geet Kosh her bible for Dutt’s bibliography.

More details about the book and how can one get it are on our main website here.

We strongly recommend reading this book which tells so many unknown aspects of Geeta Dutt’s life as a singer and as a person.

The impact of “Geeta Roy” in the forties

Wednesday, November 25th, 2009

Geeta Roy with other singers

Among the discussion on the internet, very little information is available on the contribution of Geeta Roy in the nineteen forties. The fact is that very little information is available about her songs in the forties. Hence we requested our friend and a veteran music lover Nasir Ali sahab to take up this interesting and challenging topic.

Nasir Ali is a veteran music lover and huge fan of Mohd Rafi sahab. He is based in India. He has been a great contributor to discussion associated with the golden era of Hindi film music through innovative, interesting and informative posts on his blog page here.We are grateful to Nasir ji for coming up with this detailed write up on the contribution of Geeta Roy in the forties on our special request.

The article is posted on our main website here

http://www.geetadutt.com/impact.html

This informative and interesting article can also be accessed from the following menu path

Her work & songs -> Her Impact

Many thanks Nasir ji for this great article.

About the photo above:

Group photo of playback singers in 50’s

A rare photo of all the singers together in the early years of their singing careers !

( front row) Zohra Jan, Rajkumari, Amirbai Karnatki, Hamida Banu, Geeta Dutt, Lata Mangeshkar, Meena Kapoor,

(and standing behind) Sailesh Mukherjee, Talat Mahmood, Dilip Dholakia, Mohd. Rafi, Shiv Dayal Batish, G.M. Durrani, Kishore Kumar , and Mukesh.